पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४८३

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भारतवर्षका इतिहास कि अफगानिस्तान और बलूचिस्तानमें हिन्दू-सभ्यता थी न कि ईरानी (पृ०३२७)। अध्यापक जैकसनकी सम्मतिहै कि अबस्तामें हरात,काबुल, गंधार, और सीस्तानके जिलोंका उल्लेख है। परन्तु जो नाम इन प्रदेशके “जन्दावस्ता में लिखे गये हैं उनका वर्तमान नामों. से कोई सादृश्य नहीं है। उदाहरणार्थ, हरातका नाम “हरोइवा" कानुलका “बएकरता", और गन्धारका "हरहवैती" इत्यादि दिया है। अध्यापक जैकसन कहते हैं कि जो नदियां उत्तरसे आकर · सीस्तानमें यहती हैं उनके नाम अब भी यही हैं जो पहले थे और चूकि ये सब नाम जन्दावस्ताके उस भागमें आते हैं जिसमें कै-वंशका यशोगान किया गया है, इसलिये यह परिणाम निकाला जा सकता है कि यह समस्त प्रदेश के. वंशके अधीन था (पृ०३२६)। फिर भारत और ईरानके बीच प्राचीन व्यापारका प्रमाण दिया गया है। परन्तु इससे ईरानकी राजनीतिक सत्ताके सम्बन्धमें कोई परिणाम नहीं निकाला जा सकता। यहांतक ईरानो प्रमाणोंका वर्णन है। इनसे हमारी सम्मतिमें यह सर्वथा सिद्ध नहीं होता कि छठी शताब्दी ईसा. पूर्वमे' ईरानका राज्य अफगानिस्तान और बलूचिस्तानके प्रदेशोंमें था। इनको उस समयके भारतका, अंग समझा जाता था। यूनानियों और लाती- कहा जाता है कि सन् ५५८ और नियोंके प्रमाण । ५३० ईसा पूर्वके योच राजा महान साई रसने ईरानके पूर्व में चढ़ाई की। इसके सम्यन्ध जो साक्षियां उपस्थित की जाती हैं वे यूनानी और लातीनी ऐतिहासिक हीरोडोटस, टेसियस (Ctesias) और जेनोफनकी है। इनमेंसे पहलेके विषयमें तो इसी पुस्तकके पृष्ठ