पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/११०

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१०० भारतवर्ष का इतिहास १-जो हाल मेरठ में हुआ बहो और बहुत जगहों में भो हुआ। अंगरेजी अफ़सर अपने सिपाहियों पर भरोसा रखते थे कि वह हमारे साथ साथ हमारे शत्रुओं से लड़े हैं और राजभक्ति की प्रतिज्ञा कर चुके हैं। पर बहुत से सिपाही अपने कर्म धर्म को छोड़ कर बाग़ो हो गये। उन्हों ने अपने अफसरों को मार डाला ; और जो अंगरेज़ सामने आया उसो पर हाथ साफ़ किया ; और फिर दिल्ली में जा पहुंचे। १० --कानपुर में नाना साहब विद्रोहियों को एक बड़ी भीड़ का मुखिया और सेनापति बना। यहां अंगरेज़ तो थोड़े थे पर मेम और बच्चे बहुत थे जो बचने की आशा से चहां भेज दिये गये थे। अंगरेज़ लोग बागियों के दल बादल के साथ थोड़ी देर तक बड़ो बीरता से • लड़े। मर्द ही मद होते तो साफ़ उनके बीच में से निकल जाते पर मेन और बच्चे उनके साथ थे उनको किस पर छोड़ते। नाना साहब ने कहा कि जो तुम लोग माधीनता स्वीकार करो तो रक्षा का प्रबन्ध करके इलाहाबाद पहुंचा दूंगा। अंगरेजों की मत मारी गई थी और वह मान गये। मंगरेज़ मेम और बच्चे गंगा जी के किनारे जाकर नावों में बैठ गये। नावों का किनारे से छूटना था, कि नाना साहब के बन्दूकचियों ने किनारे से बन्दूकें छोड़ों, बहुत से मारे गये। नावों में आग लगा दी गई। जो बचे उनमें से मर्द तो सिपाहियों की गोलियों से मारे गये, और मेम और बच्चे पहिले कैद कर जेनरलहै बलाक