पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/११९

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प्रथम वाइसराय-लार्ड कैनिग १०६ ७-दूसरी बात यह है कि भारत के भिन्न भिन्न प्रदेशों के वासा बहुत सी बातों में एक दूसरे से बहुत कुछ विभिन्नता रखते हैं, जैसे कि उनके रूप, रंग, भाषा, जातियां, वंश, धर्म, रहन, सहन, आचार, व्यवहार सब ही भिन्न हैं। आय्य वंश का एक सिक्ख, मदरासो द्रावड़ो से कुछ भी नहीं मिलता। पंजावो मुसलमान, बंगालो हिन्दू से तथा विलोचो, ब्रह्मदेश वा आसाम देश के किसी वासी से कुछ भो समानता नहीं रखता। उत्तर-पश्चिमीय सोमा प्रान्त का पठान मलावार के हिन्दू नायर से सर्वथा भिन्न है अतः भारत में एक प्रदेश का उसके वासियों के लिये जो चोज़ उचित या लाभकारी हो सकती है, वही दूसरे के लिये अनुचित तथा हानिकारक होनो सम्भव है। . ८-यह समग्र बातें इसके लिये यथेष्ठ कारण है कि भारत को प्रमुख गवर्नमेण्ट को सुधार करने वा भारत शासन सम्बन्धी नये नियम बनाने और नये ढंग स्वीकार करने में अत्यन्त सावधानो तथा धैर्य से काम लेना पड़ता है। इन सुधारों का प्रयोजन यह होता है कि समग्र प्रजा के लिये जीवन व्यतीत करना सहल तथा सुगम हो जाय, यह नहीं कि किसी एक जाति पर कृपा की जाय या किसी एक जाति को दूसरी पर अत्याचार करने का अधिकार प्राप्त हो । ६----जब शासन डोर कम्पनी के हाथों निकल कर घृतानिया अधोश के हाथों में आई तो पुराने "बोर्ड आफ़ कन्द्रोल" के स्थान में एक कौन्सिल स्थापित की गई, जिसका नाम "इण्डिया कोन्सिल" हुआ। इसका प्रधान "सेक्रेटरी आफ़ स्टेट फ़ार इण्डिया" अथवा "भारत मन्त्री" कहलाया। उसको सिंहासन की ओर से नियत किया जाता है। पहिले इस कौन्सिल के सब सभासद अंगरेज हुआ करते थे। किन्तु अब इसके दो सभासद भारतीय भी है।