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भारतवर्ष का इतिहास

४--सन् १७४८ ई० में बूढ़े निज़ामुलमुल्क की मृत्यु हुई। उसका बड़ा लड़का नासिरजंग बाप को जगह दखिन का सूबेदार बना लेकिन उसका भतीजा मुज़फ्फरजंग भो सूबेदारी के लिये अपने भाग्य को परोक्षा करना चाहता था। वह पांडीचरी पहुंचा और फ़रासीसियों से सहायता मांगी। इस समय चंदा साहेब जो एक और सरदार था यह चाहता था कि अनवरुद्दीन की जगह आप करनाटिक का नवाव हो जाय । यह भी डुपले के पास गया और सहायता की प्रार्थना की।

५--डुपले ने प्रसन्नता से दोनों को सहायता देने का बचन दिया। वह ऐसा अवसर ईश्वर से मनाया करता था। इस कारण उसने एक बली सेना एक बीर अफ़सर के साथ जिसका नाम बुसी था भेजी। तीनों की सेनाओं ने अरकाट पर चढ़ाई की। अनवरुद्दीन को हार हुई और वह मारा गया। अरकाट चढ़ाई करनेवालों के हाथ में आया। अनवरुद्दीन का वेटा महम्मद अली त्रिचनापल्ली को भागा और वहां अपनी रक्षा का प्रबंध करने लगा। विजयो लोग दक्षिण को ओर बढ़े। नासिरजंग भी मारा गया ओर बुसी बड़ो धूम से हैदराबाद में घुसा।

६--डुपले की मनोकामना पूरी हुई। नये निज़ाम ने फ़रासीसियों को पूर्वीय तट पर उत्तरीय सरकार का इलाका दे दिया ; डुपले को करनाटिक का गवर्नर बनाया और उसके आधीन चंदा साहेव को वहाँ के नवाब की पदवी दी। चंदा साहेब ने भो फ़रासीसियों को करनाटिक का एक बड़ा इलाका और बहुत सा रुपया भेंट किया ।

७--चंदा साहेब और फ़रासीसियों महम्मद अली को त्रिचनापल्ली में बंद कर रखा था। उसने अंगरेज़ों से व्यवहार बढ़ाया और उनसे मदद को प्रार्थना की।