पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१४९

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1 महायुद्ध में भारत बेलजियम, ग्रीस, संयुक्त अमेरिका तथा कई अन्य लघु जातियां यह मित्र-दल के नाम से प्रसिद्ध थीं। २-जमन चिरकाल से अंगरेज़ों तथा फ्रान्सीसियों से घृणा करते चले आये हैं। इन से वह ईर्षा करते थे, अतः चालीस वर्षे से वह युद्ध सम्बन्धी तैयारियों में लगे हुए थे। उनके पास लाखों सिपाहियों को एक बड़ी फौज, एक जबरदस्त जहाज़ी बेड़ा, सहस्रों बड़ी बड़ी तोपें, जिन में कई एक दुनिया भर में सब से बड़ी तो थीं ; हर प्रकार का बेहद सामान और कई सौ हवाई जहाज़ों का एक बेड़ा था। उन्होंने अपनी तैयारियों को ऐसा गुप्त रक्खा कि किसी को कानों कान भी पता न हुआ : वैसे देखने में उन्होंने अपना वर्ताव ऐसा मित्रवत् रक्खा कि अंगरेजों और फ्रान्सीसियों को यह कभी स्वप्न में भी ध्यान नहीं आया कि जर्मन उनके लहू के प्यासे शत्रु हैं। ३-जमेनों की इच्छा यह थी कि पहले फ्रान्स पर आक्रमण करके उसको राजधानी पारस पर अधिकार जमा लें, और फिर इङ्गलिस्तान पर चढ़ जाएं। प्रत्येक देश में उनके जासूसों के जत्थे के जत्थे विद्यमान थे। यहां तक कि भारत भी उनसे खाली न था। वह जानते थे, कि अंगरेजों की सेना कुछ अधिक नहीं, कारण यह कि वह एक बड़ी शान्तिप्रिय जाति है, और दूसरों को कष्ट पहुंचाना नहीं चाहती। जर्मनों ने सोचा था कि वह इङ्गलिस्तान को सहज में ही परास्त कर लेंगे। फिर उनका बिचार था कि समन यूरोप पर विजय पापं, और उसके उपरान्त समस्त संसार को अपने वशीभूत करें। भारत भी उस ही में शामिल था। "जर्मनी सब का शिरोमणि" यह उनका मूलमन्त्र था। लड़ाई छिड़ते ही जमन कैसर अर्थात् जर्मन सम्राट ने खुल्लम खुल्ला यह डोंग मारनी आरम्भ कर दी थी कि "मैं भारत-