पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१५

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क्लाइव,भारत में अंग्रेजी राज की नीव डालनेवाला

८--अंगरेज़ो गवर्नर पास इतना सामान न था कि अपने दोनों गढ़ों को रक्षा भो करता और त्रिचनापल्लो से फरासीसियों को भी जो उस जगह को घेरे हुए थे हटा देता। इस लिये उसने थोड़ी सी सेना को हथियार और खाने पोने को वस्तु देकर महम्मद अली के पास भेजा और उसको एक पत्र में लिखा कि अन्त तक लड़ाई से मुंह न मोड़ो, जमे लड़ते रहो और मेरे ऊपर विश्वास रक्खो, मैं और सेना भेजता हूं। क्लाइव इस सेना के साथ था उसने ऐसी बीरता के साथ युद्ध किया कि त्रिचनापल्ली के भीतर घुस गया और जब वहां से बाहर आया तो उसे उसी समय कप्तान की पदवी मिल गई।

६--क्लाइव ने मद्रास पहुंच कर गवर्नर से कहा कि महम्मद अली का हाल बहुत बुरा है ; वह और युद्ध न कर सकेगा। उसने यह भी कहा कि फरासोसियों की सेना कुछ त्रिचनापल्ली में है कुछ पांडोचरी में कुछ बुसी के साथ दूर देश हैदराबाद में पड़ी है। करनाटिक की राजधानी अरकाट में इतनी सेना नहीं है कि वह उसको रक्षा कर सके। मैं चाहता हूं कि अरकाट जाऊं और उसे सर करने की चेष्टा करूं। जो यह उपाय सुफल हुभा तो चंदा साहेब त्रिचनापल्ली छोड़ कर अरकाट लेने आयेगा और तव महम्मद अली को छुटकारा मिल जायगा।

१०--गवर्नर को कप्तान क्लाइव को सलाह भली मालूम हुई और उसने उसकी बात मान ली। कुल दो सौ गोरे और तीन सौ हिन्दुस्थानी सैनिक ऐसे थे जो क्लाइव के साथ जा सकते थे पर वह भी बिलकुल नौसिखुये थे। उनमें से बहुतों ने कभी युद्ध का मुंह तक न देखा था। परन्तु क्लाइव ने उन्हों को बहुत जाना। मद्रास से अरकाट को कूच करता जाता था परन्तु मार्ग में साथ हो साथ कवायद भो सिखाता जाता था। क्लाइव को छः दिन कूच में लगे