पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१५२

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१४२ भारतवर्ष का इतिहास नवयुवकों से लेकर ५० वर्ष के बूढ़ों तक सब अपना अपना साधारण कार्य छोड़ कर उन कैम्पों में जा पहुंचे जहां रणशिक्षा दी जाती थी, और वहां कवायद तथा अन्य रण विद्या सीख कर फ्रान्स के रणक्षेत्रों में जा डटे। धनो निधन प्रत्येक अवस्था के लोगों ने इसमें भाग लिया। रईसों, ड्यूकों, अलों और लाडौँ के पुत्र, राजकुमार वेलस तक सर्वसाधारण योधाओं के साथ सेनाओं में जाकर भरती हो गये। धरों पर और देशों में उनकी जगह उनकों स्त्रियों, माताओं, बहिनों तथा पुत्रियों ने काम किया इंगलिस्तान को स्त्रियों ने अपने कोमल हाथों से खेतों में हल चलाये, फसल काटी, दूकानों तथा दफ्तरों में काम किये, कार्यालयों तथा वर्कशापों में जाकर बन्दूकें ढालों, वारूद बनाई, गोले तथा गोलियां तैयार कों, और जिस बस्नु की आवश्यकता पड़ी वहीं पूरी की। सहस्रों रमणियां जखमी सिपाहियों की टहल सेवा तथा मलहम पट्टी करने के लिये इंगलिस्तान के अस्पतालों तथा फ्रान्स के फौजी अस्पतालों में जा घुसी, जो रणक्षेत्रों में कुछ दिनों के लिये डेरों में बनाये गये थे। ८-~युद्ध की घोषणा होते हो वृटिश साम्राज्य के सभी उपनिवेशो कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, दक्षिण अफ्रिका आदि प्रदेशों ने योधाओं, धन तथा अन्य बस्तुओं से मातृभूमि की सहायता की। --भारत भी इस समय वृटिश साम्राज्य की सहायता के लिये सब प्रकार से उद्यत रहा। भारत के सात सौ राजकुमारों तथा राज्याघोगों में से प्रत्येक ने अपने आप को अपनी तलवार, अपना सेना, तथा अपना कोष, सारांश यह कि सर्वस्व सम्राट की भंट कर दिया। समन बृटिश भारत में सभाएं हुई जिन में वक्तृता करनेवाले वक्ताओं ने उच्च स्वर से यह प्रगर किया, कि इस अवसर ,