पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१५५

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महायुद्ध में भारत अपने विश्वासी सहायक भारत सम्राट को सैनिकों तथा धन से सहायता दी। १२-४ अगस्त सन् १९१४ ई० को युद्ध का घोषणा हुई, और सितम्बर वा अक्तूबर में वृटिश भारत की सेना के पहिले दो डिवीज़न अपने सेनापति सर जेम्स विलकौक्स के आधोन फ्रान्स पहुंच गये। इसमें अंगरेज़ो वा भारतीय दोनों रेजिमेंटों के योधा सम्मिलित थे। यह २४ सहस्त्र योधाओं को एक प्रभावशाली छोटी सी सेना थो। किन्तु इसका प्रत्येक जवान एक शूरबीर योधा था। भारतीय दल में पश्चिमोत्तर भारत को योधा जाति के छोटे छोटे योधा थे। बीर राजपूत, शूर्मा सिक्ख, लम्बे तड़ेंगे, सुन्दर पंजाबो मुसलमान, हंसमुख बौने गोरखे, तथा गढ़वाली विशाल कायी डोगरे, तथा परिश्रमी जाट, सब इस सेना की शोभा बढ़ाते थे ।। अंगरेज़ सिपाही तथा भारतीय सब एक दूसरे के साथी तथा हथियारबन्द भाई थे। सब बरावर बराबर अपनो बीरता दिखाने के लिये, और यदि आवश्यक हो तो अपने देश तथा सम्राट के लिये लड़ कर प्राण देने के लिये वेचैन थे। यद्यपि एक भयानक शत्रु से सामना था, किन्तु इसको उनमें से किसा को भी चिन्ता न थी। १३-ऐसे शत्रों का भारती योधाओं क पहिले युद्ध जिन में इन्होंने भाग लिया था, वह इस भयानक युद्ध के सामने बालकों के खेल से अधिक न थे। इससे पहिली लड़ाइयों में लोग जल वा स्थल पर युद्ध करते थे, किन्तु इस युद्ध में लोग केवल जल पर ही नहीं लड़े, वरन् समुद्रतल से नोचे भो, अर्थात् ऐसे जहाजों में बैठ कर जो पानी के नीचे जाकर मछलियों के समान चलते फिरते हैं और समुद्र के ऊपर वायुमण्डल में पक्षियों के समान उड़ते हैं। उनका सामना करना था।