पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१५६

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भारतवर्ष का इतिहास १४- स्थल पर भी खाइयों, धरती के नीचे सुरंगों में और पृथ्वी से सहस्रों कीट ऊपर हवाई जहाज़ों में लड़ाई होती थी, जो रेल से भी तेज़ चलते थे। बहुधा शत्र दिखाई भी न देता था। वह सामने मीलों दूर होता था, और किसो ऐसे स्थान से गोला फेंकता था जो दिखाई ही न देता था, अथवा ऊपर आकाश हवाई जहाज़ पर सब से ऊंचे बादलों में से नीचे पड़ी हुई सेनाओं पर बम्ब के गोले बरसाता था। इस युद्ध में भारता सेनाओं को जो जो कठिनाइयां झेलनी पड़ी वह पहिले कभी नहीं पड़ी थीं। वह एक विदेश, फ्रान्स में पड़े थे, जहां के मौसम तथा निवासी और उनके रहन सहन के ढंग भारतीयों के लिये बिल्कुल अजीब थे। उत्तरी शीतकाल का शोत, बरफ़ बरसना, वर्षा, हिम, दलदल सभी महा भयानक थी, वह उस देश के निवासियों की भाषा भी नहीं बोल सकते थे, किन्तु, इस पर भी उनके दिल सब प्रकार के भय तथा शंका से खाली थे --