पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१६४

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भारतवर्ष का इतिहास २-हम देख चुके हैं कि पहिले पहिल सन् १९०६ ई० में घाइसराय और सूबों को कार्यकारिणी सभा में भारतीय सदस्य नियुक्त हुए। कार्यकारिणी सभा के सदस्य बन कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि भारतवासी न्याय और राजनीति अर्थात् शासन में सहायता करने के योग्य हैं। ३-८ वर्ष बीत जाने पर श्रीमान् सम्राट और उनके मन्त्रियों ने सोचा कि भारतबासियों को, कानून बनाने तथा शासन में और अधिक अधिकार देने का समय आ गया है। जिस में वे शासन में केवल सहायता ही न कर बल्कि वास्तविक शासन करें उन्होंने निश्चय किया कि इस नीति को काय्य में परिणत करने के लिये नये कानून बनाये जावें, ताकि अन्त में भारतवासी हिन्दुस्तान का शासन उसी प्रकार करें जिस प्रकार इंगलैण्डवाले इंगलैण्ड का शासन करते हैं। अनुसार भारत के सेक्रेटरी ने पार्लिमेण्ट में यह घोषणा की कि बृटिश राज्य की यह कामना है कि जहां तक शोध हो सके भारतवर्ष के प्रत्येक शासन विभाग के उच्चतर पदों पर यथा सम्भव अधिक भारतवासी नियुक्त किये जायें। फिर धोरे धीरे समस्त बृटिश भारत को बृटिश आधीनस्थ देशों की तरह स्वराज्य दे दिया जाय ( अर्थात् भारतबासी ही भारत का शासन करें') मंत्री ने यह भी कहा कि एक साथ ही ऐसा न हो सकेगा किन्तु क्रमानुसार--और यह यात बृटिश राज्य पर छोड़ दो जावे कि वह इस उद्देश्य पर दृष्टि रखते हुए समय और क्रम को निर्धारित करे और यह बात उन लोगों के काय्य सञ्चालन के ढंग पर निर्भर है जिनको इस शासन का अधिकार दिया जायगा उनका काय्य जितना हो उत्तम होगा उसी के अनुसार बृटिश भारत को स्वराज्य मिलने में शीघ्रता होगी। -उसके