पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१७

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क्लाइव, भारत में अंगरेजी राज को नेव डालनेवाला १२–जब लगभग दो मास बीत गये तो मद्रास के गवर्नर ने क्लाइव को सहायता के लिपे थोड़ सी सेना भेजी। रज़ा साहेब ने भी सुना कि क्लाइव की सहायता के लिये सेना आई है तो उसने सम्हल कर फिर आक्रमण किया। इस बार गढ़ लेहो लेता परन्तु उसके चार सौ मनुष्य खेत रहे और उसको पीछे हटना पड़ा। वह निराश हो गया और अपनी बची खुची सेना लेकर अरकाट लौट गया, क्योंकि उसे यह भी डर था कि यदि एक दिशा से क्लाइव अपनी सेना लेकर गढ़ से बाहर आया और दूसरी दिशा से अंगरेज़ों की कुमक आ पहुंची तो मैं बीच हो में घिर जाऊंगा। लाड लाइव १३-- अरकाट का घेरा प्रसिद्ध है। इसकी तारीख सन् १७५२ ई० है। यहां से दखिन में अंगरेजों की दशा का रंग पलटा है। अब से अंगरेजों की बढ़ती और फ़रासोसियों को घटती होने लगी। १४-मेजर लारेंस और क्लाइव त्रिचनापल्लो पर चढ़े चले गये। बड़ा घोर युद्ध हुआ, फ़रासीसियों को हार हुई और वह बंदी हो गये। त्रिचनापल्ली अंगरेजों के हाथ आया और उन्होंने अपने मित्र महम्मद अली को करनारिक का नवाब बना दिया। चंदा साहेब भाग कर तंजौर पहुंचा और वहाँ के मरहठा राजा को आज्ञा से मार डाला गया। १५-इसके पीछे कप्तान क्लाइव कड़ी मिहनत से बीमार हो जाने के कारण विलायत चला गया। इङ्गलिस्तान के बादशाह ने