पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१७२

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भारतवर्ष का इतिहास १८१७ ई० से अंगरेज़ी इलाक में यही कानून जारी है। मनु के धर्मशास्त्र के अनुसार ब्राह्मण को किसी अपराध में प्राणदण्ड नहीं मिलता, उसका अपराध कितना ही बड़ा क्यों न हो। ७-जैसी धर्म के विषय में स्वतन्त्रता है वैसी ही खाने पीने में भी है। कपड़ा पहनने और रहन सहन की रीति में जिसका जो जी चाहे कर सकता है। जिसका जो चाहे घोड़े पर चढ़े चाहे हाथी पर, गाड़ी में जाय या पैदल छाता लगाये या न लगाये। पगड़ी बाँधे या टोपी दे। टोपी देशी हो या अंगरेज़ी कोई रोक टोक नहीं है, झोपड़ी में रहे या महल में, रेशमो कपड़ा पहिने या सूती। कोई किसी को मना नहीं कर सकता। ऐसे ही जिसका जैसा जो चाहै रोटो कमाय। बाप ने जो धन्धा किया वही करना आवश्यक नहीं है। भारत में ऐसी स्वतन्त्रता कभी न थो। ८-हमारी सरकार केवल जाति पांति, रीति रसम ही मानने को आशा नहीं देती। पुराने स्मारक और प्राचीन काल के घरों स्तम्भगारों की पूरो रक्षा करती है। भारत को बहुत सी पुरानो सुन्दर इमारतें, जैसे मन्दिर, मसजिद, मकबरे, खम्भे, फाटक और मेहराबें खड़ी हैं। इनमें बहुतेरे टूटते फूटते जाते थे क्योंकि कोई उनकी पूछ ताछ न करता था। इनके बनानेवाले संसार से सिधार गये। सूर्य की तपन, वर्षा, आंधी, बवंडर इस देश में लगे ही रहते हैं। इन्हें बड़े वेग से नष्ट कर रहे थे। अब सरकार ने एक महकमा इस अभिप्राय से बनाया है कि पुरानी इमारतों की मरम्मत कराता रहे, और जहां तक हो सके इनको मूल रूप में बनाये रखे। एक ही बरस में इस काम में सात लाख रुपया खर्च हुआ है। इस महकमे का नाम प्राचीन स्तम्भ रक्षा का महकमा है।