पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१७७

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प्रेट ब्रिटेन के साम्राज्य में भारतवर्ष की उन्नति देख न पड़ती और मिलती भी तो बहुत महँगी। व्यापार की उन्नति जैसी अब हम देख रहे हैं अगले दिनों में जब सड़कें धुरी थी और रेल का नाम न था असम्भव थी। ३--भारत में अंगरेज़ो शासन से पहिले सड़कों का ऐसा न था जैसा अब है। रास्ते बरसात में काम न आते थे ; कोचड़ पानो से दव जाते थे। पुल कहीं इका दुक्का देख पड़ता था। माल असबाब बैलों पर लाद कर ले जाते थे। यात्री मुसाफ़िर घोड़े दर्दुओं पर चलते थे सो भी जिनके पास न थे वह दुखिया सैकड़ों मील पैदल चलते थे। ४-१८३६ ई० में सड़कें बनने लगीं। पहिले काम बहुत धोरे धोरे होता था; क्योंकि अच्छो सड़कों के बनाने में बड़ा धन लग जाता था। लार्ड डलहोजी के शासन में १८५४ ई० में हर सूबे में बारकमास्तरी का महकमा बनाया गया जो सड़कों, सरकारी इमारतों और नहरों की देख भाल करै। बड़े बड़े शहरों के बीच में बड़ी सड़के तो बनी ही इनके सिवाय बहुत सी कश्ची सस्ती सड़कें भी सारे देश में बनाई गई। अब (१९१२ में) पचपन हज़ार मोल लम्बी पक्की सड़ और एक लाख तीस हज़ार मील लम्बी कच्ची सड़कें तैयार थीं और एक बरस में उनकी देख भाल में पांच करोड़ रुपया खर्च होता है। ५-इस में सन्देह नहीं कि पक्की सड़कें अच्छी होती हैं और इनसे बड़े लाभ है। पर रेल की पटरियां इन से बढ़कर काम की होती है। अव भारत में बाहर से बहुत सा माल आता है क्योंकि रेलों के द्वारा बहुत जल्दी और थोड़े से खरचे से एक जगह से दूसरी जगह पहुंच जाता है। ऐसे हो बहुत सी बस्तुएँ बाहर भेजी जाती हैं ; रेलों पर लाद कर बन्दरगाहों में पहुंचा दी जाती हैं। वहां जहाज़ों पर लद कर दूर देशों पहुंचती