पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१७८

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भारतवर्ष का इतिहास हैं। ऐसे ही भारत के एक भाग से दूसरे भाग में माल पहुंचाया जाता है। किसी सूबे में फसल अच्छी हुई तो जितना अनाज वहां के रहनेवालों के काम न हुआ वह बेच डाला जाता है और दूसरी जगह भेज दिया जाता है। ऐसा न करें तो वहीं पड़ा पड़ा सड़ जाय। उन जिलों में बहुत भेजा जाता है जहां वर्षा न होने से अन्न न उपजता हो । ६-लोहे के भारी भारी पुलों से रेलें बड़ी नदियां पार करतो हैं। इन में कोई कोई तो दुनिया भर में बड़ी श्रेणी के हैं और मोल भर से अधिक लम्बे हैं। लम्बी लम्बी रेल गाड़ियां दिन रात बिना बिलम्ब इन पर चला करती हैं। अगले दिनों में अच्छे ऋतु ही में लोग बाहर जाते थे। यात्रियों को कभी बाढ़ के कारण नदियों के तीर पर कई दिन रुके रहना पड़ता था। अब पुलों को महिमा से हर ऋतु में बड़ो सुगमता से यात्रा हो सकती है। आंधी पानी से कुछ हानि नहों। वर्षा हो या सूखा, सब दिन आनन्द से लाहोर से कलकत्ता बारह सौ मोल या कलकत्ता से बम्बई साढ़े तेरह सौ मील, रेल गाड़ी में बैठे बैठे चालीस घण्टे में यात्री पहुंच सकता है। इससे पहिले आदमी दिन भर में दस से बीस मील तक चल सकते थे। उतनो ही देर में उसे चार सौ मोल पहुंचा देतो है। ७-भारत में सब से पहिले रेल की सड़क केवल बीस मील लम्बी थी। यह १८५३ ई० में बम्बई में बनाई गई थी। १८५७ में रेल की सड़क ३०० मील लम्बी थी। पचास बरस पीछे १६०६ में ३१००० मोल लम्बी लाइन बन चुकी थी। इस बरस तैंतीस करोड़ यात्रा चले और ६ करोड़ चालीस लाख टन माल भेजा गया। तोसरे दर्जे के मुसाफ़िर से एक मील पोछे एक पैसा और एक टन माल पर मोल पीछे दो पैसा महसूल लिया गया। अब रेल