पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१७९

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ग्रेट ब्रिटेन के साम्राज्य में भारतवर्ष की उन्नति (४) डाक और तार १-डाकखाने का जो अब प्रबन्ध है उसका अगले दिनों में नाम भी न था। जब अनेक राज थे और कोई बड़ा शासक न था तब डाकखानों का होना असम्भव था। और देशों में जो पत्र किसी दूत के हाथ भेजा जाता था वह बहुधा तो पहुंचता ही न था और जो पहुंच भो जाता था तो कई महीने लग जाते थे और खर्च बहुत पड़ जाता था। २-१८३७ ई० में सर्वसाधारण के लिये भारत में डाकखाने खोले गये। उन दिनों रिकट न थे। महसूल पहले देना पड़ता था और दूरी के विचार से कम ज्यादा महसूल लगता कलकत्ता से बम्बई तक चिहा का महसूल तोला पीछे एक रुपया था। ३–१८५४ ई० में भारत में डाक का महकमा बनाया गया। टिकट चलाये गये। इस समय सारा भारतखण्ड एक शासकके आधीन हो चुका था। इस कारण दूरी का बिचार छोड़ कर महसूल बांधा गया। इस के पीछे समय समय पर इप्स में घटती होती गई और होते होते जितना अब है वह होगया । ४-१८५६ ई० में ७५० डाकखाने और लेटर बाक्स थे। चिहियां ३६ हज़ार मोल चलों। साल भर में ३ करोड़ चिट्टियां और पारसल भेजे गये। ६० बरस के भीतर भीतर विना परिमाण उन्नति हुई। अब ७० हज़ार डाकखाने और लेटर वाक्प्त हैं। १ लाख ६० हजार मोल को दूरी तक चिट्ठियां भेजी जाती हैं। ६४६ करोड़ चिट्टियां और पारसल भेजे जाते हैं। तीन पैसे का पोष्टकार्ड ३००० मील तक जा सकता है और दो आने में इङ्गलिस्तान चिहो जाती है जो ८००० मील दूर है।