पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१८७

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ग्रेट ब्रिटेन के साम्राज्य में भारतवर्ष की उन्नति १७७ महंगी न भी पड़े तो भी हर सूबे में इमदादी (सहायतार्थ) काम के नशे तैयार रहते हैं और गवर्नमेण्ट की ओर से मंजूरी दी जाती है जिसमें सूखा पड़ने पर किसी प्रकार का बिलम्ब न हो, न समय वृथा नष्ट किया जाय । १४-अन्तिम उपाय यह है कि सरकार १८७८ ई० से हर साल डेढ़ करोड़ रुपया अलग रखती जाती है जिससे किसी सूबे में अकाल के लक्षण देख पड़े तो लोगों की सहायता के लिये सरकार के पास भरपूर धन रहे और काल का पूरा प्रतिकार हो सके। ( ८ ) सेविंग बैंक और साझ के पूजी के बैंक (जमींदारी या जिरायती बैंक ) १--सब जानते हैं कि जब किसी के पास बहुत सा रुपया हो तो उसमें से कुछ बचा लेना कैसी अच्छी बात है। क्योंकि वह बीमार पड़ जाय काम करने के योग्य न रहे, या बूढ़ा हो जाय तो वह जमा धन उसके काम आयेगा। इसलिये गवनमेण्ट ज़मोंदारों को रूपया बचाने में मदद देती है। २--कभी कभी सब को थोड़ा बहुत उधार लेने का काम पड़ ही जाता है। अगले दिनों में और अब भी साहूकार लोग बड़ा सूद लेते हैं। कोई गरीब आदमी इनसे रुपया उधार ले तो अभागा कभी उऋण नहीं होता। इसी कारण गवर्नमेण्ट ज़मींदारों को थोड़े सूद पर रुपया उधार देकर उनकी सहायता करती है। यह इस रोति से होता है। ३---डाकखानों में सेविङ्ग बैङ्क है। इन में जिसका जो चाहे और जब जो चाहे चार आने तक जमा कर सकता है। यह रुपया उसकी बचत में रहता है और इस पर ३, सैकड़ा सालाना सूद भी मिलता है। देश के बैंकों में इस से अधिक भी सूद मिल . Hist, PT, II.-12.