पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१८९

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ग्रेट ब्रिटेन के साम्राज्य में भारतवर्ष की उन्नति १७६ ऊपर लें तो यह चिन्ता घट जाती है और इसी कारण साहूकार थोड़े घ्याज पर रुपया देने को तैयार हो जाता है। फिर इस बैङ्क से इसके मेम्बर थोड़ा सा अधिक सूद देकर रुपया उधार लेते हैं । इससे कुछ लाभ भी हो पड़ता है जो अपने अपने हिस्से के अनुसार मेम्बरों में बंट जाता है। ६ --अब ऐसी बहुत सी सोसाइटियाँ हो गई हैं जिन का आरम्भ १६०४ ई० से हुआ। १९११ ई० में ब्रिटिश इण्डिया में इनकी गिनती साढ़े तीन हज़ार थी और इनकी कुल पूंजी एक करोड़ तीन लाख की रही। इस पूंजी में सात लाख से कुछ अधिक सरकार का कर्जा था। (६) व्यापार १---भारत से और और देशो से सैकड़ों बरस से व्यापार होता रहा है। पर पुराने समय में यह व्यापार बहुत कम था। आजकल जितनी चीजें और देशों से आती हैं या जो असबाब यहां से और देशों को भेजा जाता है उसको अपेक्षा जिन बस्तुओं का व्यापार होता था वह बहुत थोड़ी थी। जब तक सारे भारतवर्ष में शांति स्थापित नहीं हुई और अच्छी सड़क और रेलें नहीं बनों देश के भीतरी व्यापार की उन्नति न हो सकी। इसी तरह समुद्र पार दूर देशों के लिये धुआंकश जहाज़ की आवश्यकता होती है। २----पहिले भारत में बन्दरगाह बहुत कम थे। थे उन में बहुत कुछ ठीकठाक किया गया और उनमें अधिक जगह निकाली गई। अब जहाजों पर से बड़ी सुगमता से माल असबाब और मुसाफ़िर उतरते हैं। भारत के बड़े बड़े बन्दरगाह कलकत्ता, वम्बई, रंगून, मदरास, करांची और चटगांव जो पुराने