पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१९०

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अब १८० भारतवर्ष का इतिहास में हैं। इनमें से रेल को लम्बी लाइनें भारत के सब प्रान्तों में पहुंचती हैं और जो माल जहाजों पर लदकर परदेश से आता है उसे ढो ले जाती हैं। ३-१८६६ ई० से थ्यापार में बड़े बेग से उन्नति होने लगी। इसी साल स्वेज़ को नहर खुली और उसमें से होकर जहाज़ आने जाने लगे। इङ्गलिस्तान से भारत की पुरानो राह सारे अफ्रीका महाद्वीप का चक्कर लगातो थो और सौ दिन और कभी कभी इस से भी अधिक दिनों में यात्रा पूरी होती थी। सोलह ही दिन लगते हैं। ४-ज्यों ज्यों व्यापार में वृद्धि हुई त्यो त्यो सरकार भी देश में आने का कर (कस्टम् उयूटी) घटाती गई। पहिले जो माल बाहर से देश में आता था उसके दाम पर बीस रुपया सैकड़ा कर लिया जाता था। अब केवल पांच रुपया सैकड़ा लिया जाता है। लोहे और इस्पात की चीज़ों पर १) सैकड़ा और रई के कपड़ों पर ३॥) सैकड़ा टैक्स है। बहुतसी चीजें जैसे किताबें ऐसी भी हैं जिन पर टैक्स नहीं हैं। ५--१८३४ ई० से सात करोड़ रुपये का माल बाहर से आया और ग्यारह करोड़ का माल बाहर गया। अरब उन्हत्तर करोड़ का माल बाहर से आया और दो अरब सोलह करोड़ का माल बाहर गया। समुद्र की राह दूसरे देशों से भारत का जो व्यापार अब है वह ऐसे व्यापार से जो पचास बरस पहिले था नौ गुना बढ़ गया है। यह व्यापार दुनिया सब देशों से है। भीतर आनेवाला माल आधे से अधिक ब्रिटन से आता है बाको और देशों से। बाहर जानेवाले माल का एक चौथाई ब्रिटन को, बाकी और देशों को ; कुछ यूरोप और कुछ एशिया मं भेजा जाता है।