पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१९२

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१८२ भारतवर्ष का इतिहास ६-बहुत पुराने समय में और उसके पीछे भी सैकड़ों बरस तक भारत में जिस चीज़ का काम पड़ता था वह यहीं बनती थी या पैदा होती थी। गांव गांव में अपनी अपनो फ़सल थो और अपने अपने कारीगर। फिर एक दिन ऐसा आगया कि लोगों के काम की चीजें और देशों में अच्छी और सस्ती मिलने लगीं। इसलिए लोग उन्हें मंगवा लेते थे। अब भी यही दशा पर वह दिन निकट आ रहा है जब इस देश के काम को चीजें यहीं बन जाया करेंगो। बड़े बड़े शहरों में कारखाने और वर्कशाप खुल गये हैं। बम्बई, कलकत्ता और कानपुर में रूई के पुतलीघर बन गये हैं। आजकल कपास, रेशम, सन, कच्ची खालं, चमड़ा, और लकड़ी भारत से बहुत दूर यूरोप को जाती हैं। वहां चतुर कारीगर उनके सामान बनाते और फिर भारत को भेज देते हैं। इस देश के कारीगर भी निपुण होते और मेहनत से काम करते तो ये चीजें यहीं बन सकती थीं। सरकार अब कारीगरी के मदरसे बहुत जगह खोल रही है जिससे यहां के कारीगरों को बहुत तरह की चीज़ बनानो आजायं (१०) स्वास्थ्यरक्षा और साधारण स्वास्थ्य १-ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने पहिले ही लोगों के लाभ के लिए अस्पताल खोले और दवाइयां और डाकर भेजे। १८५८ १० में ईस्ट इण्डिया कम्पनी टूट गई और महारानी विकोरिया राज्य का भार अपने हाथों पर लिया। उस समय एक सौ बयालीस सिविल अस्पताल थे। जिनमें सात लाख रोगियों को चिकित्सा हुई। उसके पचास बरस बाद १९०७ ई० में अढ़ाई हज़ार सरकारी अस्पताल थे जहां ढाई करोड़ रोगियों की चिकित्सा हुई। इसके सिवाय पांच सौ नीज के अस्पताल थे,