पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/१९३

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प्रेट ब्रिटेन के सम्राज्य में भारतवर्ष को उन्नति १८३ जिनमें अधिकतर पादरियों के थे। रेल और पुलिस के नौकरों के लिये पांच सौ अस्पताल और भो थे, जिनमें भी लाखों रोगियों को चिकित्सा की गई। २–सरकारो मेडिकल डिपार्टमेण्ट में हर दर्जे के सैकड़ों डाकृर हैं। इन सब को सरकार से वेतन मिलता है भारत के हर एक जिले में सिविल सरजन के आधीन एक बड़ा अस्पताल रहता है। जिनमें कहीं कहीं बहुत सी सीखी हुई औरतें (नरसे) सिविल सरजन के नीचे हैं। बड़े बड़े कसवों में भी छोटे छोटे अस्पताल हैं जिनमें असिस्टेण्ट सरजन और नरसे काम करती हैं। देशो और विलायतो सिपाहियों का विशेष ध्यान रखा जाता है। फौजी वैद्यक विभाग अलग है। हर एक रेजिमेंट में अलग अलग डाकृर और नरसें हैं। सिपाहियों की चिकित्सा मुफ्त होती है और उन्हें दवाई भ बेदाम मिलता है। -परदेवालो और ऊंची जाति की स्त्रिय के लिये जो साधारण अस्पतालों में नहीं जा सकतों जनाने अस्पताल हैं जिनमें स्त्रो डाकृर और नरसें नियुक्त हैं। इस भांति के दो सौ साठ अस्पताल हैं और उनमें हर साल बोस लाख से अधेिक स्त्रियों को चिकित्सा होती है। ४--भारत में जिस रोग से लोग बहुत मरते हैं वह बुखार है और उसके लिये सब से बढ़ कर दवाई कुनाइन है। यह एक सिनकोना पेड़ के रस से बनती है और इसके पैकेट जो सात सात ग्रेन के होते हैं सरकारी डाकखानों में पैसे पैसे के मिलते हैं। योंही देश भर में इसके लाखों पैकेर ऐसे स्थानों पर बिक जाते हैं जहां अस्पताल नहीं हैं। ५-जिस तरह सरकार रोगियों की चिकित्सा का प्रबन्ध करती है उसी तरह रोगों को दूर करने का उद्योग करती है।