पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२०४

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भारतवर्ष का इतिहास 3 बनवाना, मालगुजारी तहसील करना, कानून बनाना और ऐसे हो सव कामों का प्रबन्ध जिनका लगाव सारे देश से है सूबेवार गवर्नमेण्टे करती हैं। पर जितने सभ्यदेश हैं उनमें बहुतेरे ऐसे काम हैं जिन्हें लोकल ( स्थानीय ) कह सकते हैं जैसे बाजारों और गलियों की सफाई, रोशनी, साफ़ पानी पहुंचाना, बच्चों को पढ़ाना, दवाखाने ओर ऐसे ही अनेक काम इनको शहरों के रहनेवाले अपने चुने हुये मेम्बरों की सभा के द्वारा बहुत अच्छी तरह कर सकते हैं, क्योंकि औरों को अपेक्षा वह लोग अपने शहरों और कसों का हाल बहुत अच्छी तरह जानते हैं। इसके सिवाय जब वह उस रुपये को खर्च करने लगें जो उन्हों ने टैक्स लगा कर इकट्ठा किया है तो यह अनुमान होता है कि वह इस बात का विचार कर लेंगे कि इस धन को एक कोड़ो अकारथ न जाय और परम उचित रीति से खर्च किया जाय। लोकल सेलफ़ गवर्नमेंट ( स्थानीय स्वराज्य ) हम इसी को कहते हैं। ४-पहिले पहिल तो इस रोति को बड़े बड़े शहरों के लोगों ने अच्छा न जाना ; क्योंकि यहां यह नई बात थी। लोग कहते थे कि यह काम सरकार का है, हमारा नहीं । टैक्स लगाना और उसको खर्च करना सरकार का धर्म है। इसके सिवाये हमें अपने कामों से छुट्टो नहीं हम इसे भी करें :न हमें परवाह है क्योंकि इनके करने से कोई ईनाम न मिलेगा। ५--अन्त को बम्बई, कलकत्ता और मद्रास ऐले बड़े बड़े शहरों के कुछ मुख्य रहनेवालों ने इस काम के करने में अपनी अनुमति दी। शहरों की ऐसी सभा को म्युनिसिपल कमेटी कहते है और मेम्बरों को म्युनिसिपल कमिश्नर। इनमें बहुत से तो शहर के रहनेवाले चुनते हैं और कुछ गवर्नमेण्ट नियत करतो है। इनका सभापति चेयरमैन कहलाता है। अब ऐसे बहुत से