पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२०६

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भारतवर्ष का इतिहास (४) भारत की रक्षा १-भारत की गवर्नमेण्ट इस बात का ध्यान रखती है कि देश में एक बड़ी सेना उपस्थित रहे। हमारा जीना और हमारी रक्षा इसी पर निर्भर हैं। इसके अनेक लाभ हैं। यह न हो तो सभ्यता उसके सुख और आनन्द सब एक क्षण में नष्ट हो जायें ; व्यापार रुक जाय, खेत बिना बोधे जोते पड़े रहैं और देश में उपद्रव और मारकाट होने लगे। २- इसी कारण हमारी सरकार एक प्रबल सेना तैयार रखतो है। सिपाही पूरे हथियार लिये हुये हैं और पूरी कवाइद जानते हैं। इन्हें अच्छा खाना और बड़े बड़े वारिक रहने को मिलते हैं और उनकी सब तरह से देख भाल की जाती है। सेना में सिपाही गोरे भी हैं और देशी भी। ३.----गोरे सिपाहियों की गिनती ७० हजार है। वह सब बली जवान हैं। भारत में पांच बरस से अधिक नौकरी नहीं करते। इससे सिवाय ठहरें तो उनका बल और उत्साह दोनों घट जायें। यह बड़े बड़े स्वास्थ्य बढ़ानेवाले स्थानों में रखे जाते हैं और रेल द्वारा बहुत जल्द भारत के एक भाग से दूसरे भाग में भेजे जा सकते हैं। ४-हिन्दुस्थानी सिपाही लगभग एक लाख साठ हज़ार हैं। वह बहुधा लड़नेवालो जातियों में से भरतो किये जाते हैं, जैसे पंजाबी, सिख, राजपूत, पठान, जाठ । इन सब को अच्छी तनखाहें मिलती हैं और सब तरह से इनकी देख भाल होती है। इनके अफ़सर तीन हजार अंगरेज़ और बहुत से देशी हैं। रेजिमेंट के सब से बड़े अफ़सर को कर्नल कहते हैं। इसके आधीन मेजर, कप्तान और लेफ़टिनेण्ट रहते हैं। हिन्दुस्थानी अफ़सरों को सूबेदार और जमादार कहते हैं ।