पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२११

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भारत का शासन और प्रबन्ध २०१ अफीम का महसूल ७ करोड़ रुपये नहरों की आमदनी ५३ करोड़ रुपये नमक का महसूल ५करोड़ रुपये डाक, तार और टकसाल की आमदनी ४६ करोड़ रुपये बाकी १५ करोड़ रुपया छोटी छोटी मदों से मिला। ३-शासकों की आमदनी का सबसे बड़ा अंश सदा धरती को मालगुजारी रही है। भारत में सब धरतो को सरकार मालिक है। जो धरती जिसके पास हो या जो उसमें खेती करे उसको धरती का लगान ऐसे ही देना पड़ता है जैसे कोई दूसरे के घर में रहता तो उसे किराया देता है। पहिले यह किराया बहुत था। अब अङ्गारेजो राज में बहुत कम है। ४-भारत के प्रान्तों में लगान देने की दो रोतियां हैं जिन्हें रयतबारो और ज़मोंदारी कहते हैं। पहिली रीति मदरास के बहुत से प्रान्तों में, बम्बई, आसाम और ब्रह्मा में प्रचलित है। इसके अनुसार काश्तकार सीधा सरकार को लगान देता है। ५-जमोदारो को रोति भारत के उत्तर और मध्य में प्रचलित है। धरती एक ज़मींदार या एक जाति के पास होती है। सरकार उस ज़मींदार से मालगुजारी ले लेती है और ज़मींदार किसानों से पाता है। ६- यह रुपया कैसे खर्च होता है ? लगभग-३१ करोड़ रुपया सेना पर १८ करोड़ रुपया रेलों पर २३ करोड़ रुपया राज्यशासन प्रबन्ध पर जैसे सरकारी नौकरों को तनखाहे ११ करोड़ रुपया महसूलों को तहसील में ४६ करोड़ रुपया आवपाशी ( नहरों ) में