पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/२५

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आये। मीरजाफ़र अफ़सर था। उसने हर स्थान पर फ़रासीसियों को हाराया और उनके बड़े स्थान मछलीबन्दर को जीत लिया। अपने सिपाहियों से अधिक सिपाहो कैदी उसके हाथ इस भांति उत्तरोय सर्कार का देश सन् १७५६ ई० में अगरेजों के हाथ आया और अब तक उन्हीं के पास है। मद्रास हाते की नेव यहीं से पड़ी है। ६-१७६३ ई० में सप्तवर्षीय लड़ाई समाप्त हुई। अङ्गरेजों और फरासीसियों में सन्धि हो गई। पांडोचरी और चन्द्रनगर फ़रासोसियों को व्यापार के लिये फिर मिले। जो लड़ाई १७४४ ई० में आरम्भ हुई थी अब बीस वर्ष के झगड़े बखेड़े के पीछे इस भांति समाप्त हुई। यह लड़ाई इस भांति आरम्भ हुई थी कि फ़रासीसियों ने मद्रास के अङ्गरेज़ व्यापारियों पर चढ़ाई की थी और परिणाम यह हुआ कि अगरेज एक बड़े राज्य के अधिकारी होकर दक्षिण भारत के शक्तिमान शासक समझे गये। ५१-मीरजाफ़र (सन् १७५८ ई० से सन् १७६१ ई० तक) १-क्लाइव ने मीरजाफ़र को बंगाले के सिंहासन पर दिल्ली के बादशाह की विना अनुमति के बैठाया था। अभी तक दावा था कि हम उत्तरीय भारत के सारे प्रान्तों के शाहंशाह हैं। पहिले नवाबों की भांति मीरजाफर ने बादशाह को कोई भेट न भेजी थो। इससे बादशाह का पुत्र एक बड़ी पलटन लेकर बङ्गाले पर चढ़ आया। अवध का नावाब शुजाउद्दौल भी उसके साथ था। बादशाह को