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लार्ड क्लाइब

उद्दौला से मिल गया। दो तीन महीने मेजर मुनरो इधर उधर चक्कर लगाता रहा फिर तोनों से बकसर के स्थान पर भिड़ गया। १७६४ ई० में तीनों इसी जगह हार गये। उत्तरीय भारत में अंगरेज़ों को पहिले पहिल जो लडाइयां लड़नी पड़ी हैं उनमें पलासी को छोड़ बकसर को लड़ाई सब से प्रसिद्ध है।यह लड़ाई है जिस में अंगरेज़ दिल्ली के मुग़ल बादशाह से भिड़ गये थे। अगरेज़ों ने इस अवसर पर बादशाह को ऐसा भगाया कि वह फिर उनके सामने न आया। इस कारवाई के पीछे अंगरेज़ उत्तर भारत सब से बली देख पड़ने लगे। शाह आलम उस मेहरबानी को न भूला था जो क्लाइव पहिले उसके साथ कर चुका था। भी उसने वहा किया ; अपने आप को अंगरेजों की करुणा और दया पर छोड़ दिया। शुजाउद्दौला भाग गया और फिर कुछ पलटन बोर लाया। लेकिन कोड़ा के स्थान पर फिर हार गया। उसने अपने आप को अंगरेजों के समर्पण कर दिया। मीरक़ासिम खरा कि मेरे अपराध का दंड न जाने मुझे क्या मिले इससे भाग गया और न जाने उसका क्या परिणाम हुआ।

५३-लार्ड क्लाइव

(सन १७६५ ई० से सन् १७६७ ई० तक)

१--मोरक़ासिम के साथ लड़ाई और पटने के बध का समाचार जब इङ्गलैण्ड में पहुंचा तो ईस्ट इंडिया कम्पना ने फिर क्लाइव से हिन्दुस्थान जाने को कहा। इङ्गलैण्ड के बादशाह ने उसे लार्ड की पदवी दे दी थी। इस बार जो क्लाइव आया तो बंगाले का गवर्नर और प्रधान सेनापति होकर आया और उसको ऐसे ऐसे अधिकार थे कि जो चाहता था कर सकता था। उस समय