पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/३७

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अहमदशाह अबदाली अब पेशवा ने अपने सरदारों को चारों ओर यह आशा दी कि अपनी अपनी सेना जमा करें। राजपूतों को भी लिखा कि आओ सब मिलकर उद्योग करें और अफ़ग़ानों को देश से निकाल दें। बहुत से राजपूत इसकी सहायता को आये और हिन्दू मरहठों और राजपूतों की एक बड़ी भारी सेना हिन्दुस्थान के राज्य के लिये अफ़ग़ानों से लड़ने को आगे बढ़ी। ५-१७६१ ई० में पानीपत के मैदान में दोनों सेनाओं की मुडभेड़ हुई। यह वह स्थान था जहां १५२६ ई० में बाबर और उसकी अफ़ग़ानी और तुर्की सेना ने इब्राहीम लोदो की पलटन को तितिर बितिर कर दिया था। मरहठों के हलके सवार अफ़ग़ानों के मिलम पहिने सवारी के आगे न ठहर सके और भाग निकले। मरहठे हार गये और उनके दो लाख सिपाही अफ़ग़ानों के हाथ से मारे गये। ६-पेशवा ने जब यह भयानक समाचार सुना तो उसके प्राण निकल गये। अहम्मद शाह चाहता तो दिल्ली के सिंहासन पर बैठ जाता पर उसने यह उचित समझा कि थोड़े दिनों के लिये अपने देश को लौट जायं। ७.---१७४८ ई. की तरह १७६१ ई. भी भारत के इतिहास में बड़ा प्रसिद्ध साल है। इस साल दखिन भारत में फरासोसियों का बल घटा और उनकी राजधानी पांडिचरी जीत ली गई। इसी साल दखिन में सलावत जङ्ग जो फरासीसी जनल बुसी की सहायता से निज़ाम बना था निज़ामअली के हाथ से मारा गया और निज़ामअली उसको जगह सिंहासन पर बैठा। इसी साल अहमद शाह अबदाली और उसको अफ़ग़ानी सेना ने पानीपत के मैदान में मरहठों का सर्वनाश कर दिया। तोसरा पेशवा इस संसार से सिधार हो गया पर चौथे को इस