मुगलराज्य का अन्त २६ बङ्गाले पर चढ़ाई की। इस बार मीरकासिम भी उनके साथ हो लिया। बक्सर के मैदान में सन् १७६४ ई० में तोनों की पूरी हार हुई। दूसरे साल लाडे क्लाइव ने इलाहाबाद को सन्धि की। इस सन्धि से अंगरेजों ने शाह आलम के लिये २५ लाख रुपया सालाना पेन्शन मुकरर को और शाह आलम ने अंगरेज की शरण में इलाहाबाद में रहना स्वीकार किया। अब यह बिना राज का बादशाह था, मानो मुग़ल बादशाहो का अन्त हो हो गया। ४-पानीपत की लड़ाई के दस बरस पीछे मरहठों की फिर वहो शक्ति हो गई जो पहिले थी पर अब इनका मुखिया पेशवा न था। मरहटे राजाओं में इस समय सब से प्रबल महादाजो सिन्धिया था। उसने महाराज की पदवी धारण की और राजपूताने के सब राजाओं से चौथ लो; फिर आगे बढ़ कर दिल्ली पहुंचा और शाह आलम से कहला भेजा कि आप दिल्ली चले आयें और राजसिंहासन पर विराजें। शाह आलम ने अंगरेजों से अनुमति न लो और दिल्ली चला गया। परिणाम यह हुआ कि २५ लाख रुपया वार्षिक पेन्शन जो उसे अंग्रेजों से मिलती थी बन्द हो गई। ५-सिन्धिया ने कई बरस तक शाह आलम को "नज़रबन्द" रक्खा और उसके नाम से दिल्लीराज अर्थात् दिलो और आगरे के आस पास के देश में आप राज्य करता रहा। उसको कार्य वश अपनी राजधानो गवालियर को जाना पड़ा। उसने पीठ फेरी और एक रुहेले सरदार ने दिल्ली पर धावा मार कर बादशाही महल को लूटा और बूढ़े बादशाह की आंखें निकलवा डाली। सिन्धिया यह समाचार पाते ही बड़ो सेना के साथ दिल्लो लौट आया और उस पापी रुहेले को मार डाला। पर