पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/५०

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४० लेता। के स्थान भारतवर्ष का इतिहास ३--बम्बई के गवर्नर को चाहिये था कि नये कानून के अनुसार इस नये सन्धिपत्र के बारे में भारत को गवरमेण्ट को मंजूरी ले पर उसने इङ्गलैण्ड सीधा कम्पनी को लिख दिया कि गवर्नर बम्बई ने इस तरह का सन्धिपत्र लिखा लिया है। कुछ दिनों के पीछे भारत की गवरमेण्ट को खबर लगी। उसने सन्धिपत्र को मंजूर करने से इनकार किया और सन् १७७६ ई० में पुरन्धर पर पेशवा के बरियों से जिनका अगुवा एक ब्राह्मण नाना फरनवीस था एक दूसरा सन्धिपत्र लिखा लिया। नाना फरनवोस ने भी सालसिट देने को प्रतिज्ञा को। इसी समय कम्पनी को सूरत के सन्धिपत्र का हाल मिल चुका था। वह सालसिट और बसीन के मिलने से बहुत प्रसन्न हुई और सन्धिपत्र को मंजूरी दे दो। ४-हिन्दुस्थान और बम्बई के गवनेमेण्ट को यह उचित हुआ कि राघोवा के सन्धिपत्र के अनुसार कारवाई करें। बम्बई की सेना राघोवा को पूना पहुंचाने चली। पर रास्ते में सिन्धिया को कमान में मरहठा सरदारों को एक बड़ी भीड़ का सामना हुआ ओर अङ्ग्रेज़ो सेना को पीछे हटना पड़ा। उधर कप्तान पोफम एक बड़ा बहादुर अफ़सर वारेन हेस्टिङ्गस् की आज्ञा से कलकत्ते से चला, सिन्धिया की राजधानी ग्वालियर पहुंचा और ग्वालियर का किला ले लिया। इसो अवसर पर अंगरेजों के विरुद्ध मरहठों और हैदर अली में सन्धि हो गई और हैदर अलो ने कारनाटिक पर चढ़ाई को। परन्तु सन् १७८२ ई० में हैदर अली मर गया। नाना फरनवोस के पक्ष के मरहठों ने यह समाचार सुनते ही सन्धि कर सन् १७८२ ई० में सलवो के स्थान पर सन्धिपत्र लिखा गया और यह निश्चित हो गया कि न अङ्गरेज़ मरहठों के बैरियों को और न मरहठे अंगरेजों के बैरियो को मदद दें। सालसिट और घसीन अंगरेजों के पास रहे और राघोवा को पेनशन हो गई। ली।