पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/५१

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मैसूर की दूसरो लड़ाई इसके ६०-मैसूर की दूसरो लड़ाई (सन् १७८० ई० से १७८४ ई० तक) १-हैदर अलो ने दस बरस तक अंगरेजों के साथ सुलह रघखो। इस अवकाश में उसकी शक्ति बढ़ती गई। उसने मैसूर मलयबार और कनारा के सारे पालागार और राज दबा लिये। उसके पास फरासीसियों को सिखाई हुई एक बड़ो सेना थी ; सौ तो थों और चार सौ फरासीसी सिपाहो थे । २-हैदर अली जानता था कि अंगरेज़ मरहठों की लड़ाई में फंसे हैं। इस लिये वह यह समझता था कि मदरास जीत लेना सुगम है। उसने छिपे छिपे निज़ाम और मरहठों को लिखा कि दक्षिण से अंगरेजों को निकालने में मेरी मदद करो। पोछे सन् १७८० ई० में एक लाख सिपाहियों की भीड़ लेकर कर नाटिक पर टूट पड़ा ; कृष्णा से लेकर कावेरी नदो तक सारा देश रौन्द डाला ; गांवों में आग लगा दो; ढोर हांक ले गया। मदें मार डाले; स्त्रियों और बच्चों को पकड़ ले गया। हैदर अली के इस उपद्रव से ऐसा काल पड़ा कि पचास बरस तक लोगों ने इसका गीत गाया और इसकी कहानो कहते रहे। ३–मदरास का गवर्नर लड़ाई के लिये तैयार न था। जितने सिपाही थे सब की छोटो छोटो टुकड़ियां ठाव ठांव पर बंटी थों। करनैल बेली एक छोटी सो सेना लिये उत्तरीय सरकार की ओर से मदरास को सहायता को चला आता था कि एकापक हैदर अला ने पूलोनूर के निकट उस पर धावा मारा। करनैल बेलो बूढ़ा और निर्बल था; न तो क्लाइव का भांति उसका साहस