पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/५३

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प्रबन्धकारिणी सभा 83 ६१-प्रबन्धकारिणी सभा ( सन् १७८४ ई०) १-हैदर अलो और मरहठों के साथ लड़ने में अंगरेजों का बहुत रुपया खर्च हुआ, और इस बात को आवश्यकता हुई कि हेस्टिङ्गन कहीं न कहीं से रुपया इकट्ठा करे। कारनाटिक के बचाने के लिये हैदर अली से लड़ाई की गई थी पर करनाटिक का नबाब मुहम्मद अलो एक पैसा भी नहीं दे सकता था। शत्रु ने उसके देश को उजाड़ दिया था और अकाल भी पड़ रहा था, फिर प्रजा मालगुजारी और कर देतो तो कहां से देती। २-जब मदरास से रुपया इकट्ठा न हो सका तो हेस्टिङ्गस् ने शुजाउद्दौला के बेटे अवध के नवाब से कहा कि जो रुपया तुम्हें कम्पनी को देना रह गया है उसे दो। उसने उत्तर दिया कि मेरे बाप ने जो रुपया खज़ाने में छोड़ा था वह मेरो मा और दादी ने दवा लिया है अगर आप को आज्ञा हो तो मैं रुपया उनसे ले लू। हेस्टिङ्गस् ने आज्ञा दे दो। नवाब ने बेगो से रुपरा निकलवाने में उनको और उनके नौकरों को ऐसा कष्ट दिया कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता। हेस्टिङ्गस् का उसमें कोई अपराध न था पर उसके पुराने बैरी मानसिस ने कहा कि इस में सारा अपराध इसी का है। ३-फिर हेस्टिङ्गस् ने बनारस के राजा चेतसिंह से कहा कि कम्पनो को कुछ रुपया दो। यह अंगरेजों को सहायता से गद्दी पर बैठा था और उनको कर देता था। उसका धर्म था कि लड़ाई में कम्पनो की सहायता करे । कारण यह कि