पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/६१

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मार्किस वेलेजली अपनी इच्छा नहीं रहने पर भी किसी के साथ लड़ना पड़ा और युद्ध समाप्त होने पर कोई प्रान्त जीत लिया गया। अङ्ग्रेज़ भाप से आप किसी पर चढ़ाई न करते थे। हां कोई उन्हें छेड़ता था तो अपने बचाव के लिये न लड़ते तो क्या करते ? ईस्ट इण्डिया कम्पनो भारत में व्यापार करके रुपया कमाना चाहतो थी। देश जोतना उसका अभिप्राय न था। कम्पनी ने बार बार क्लाइव, कार्नवालिस और और गवर्नर जनरलों से ताकीद की थी कि कभी किसी देशी राजा से न लड़ो और भारत का कोई देश मत लो। ६-पर लाड वेलेजली ने देखा कि भारत के हर प्रान्त में लूक मार मची है और देश का सत्यानाश हो रहा है। उसने देखा कि भारत के शासन करने वालों में अगरेज़ सब से बली, सब से बुद्धिमान और सभ्य हैं और उनका धर्म है कि भारत को लूट मार और चौपट होने से बचायें। इस लिये यह परमावश्यक हो गया कि जितने शासनकर्ता हैं उन सब से प्रतिज्ञा करा ली जाय कि वह लोग आपस में लड़ाई दंगा न करें और अपने अपने देश का प्रबन्ध ठीक रखें। इसो के साथ यह भी उचित जाना गया कि जो राजा ऐसी प्रतिक्षा करना खोकार न करें तो उसले बरज़ोरी से ऐसी प्रतिज्ञा कराई जाय । ऐसे अभिप्राय से एक बड़ी सेना रखने का आवश्यकता हो गई जो सारे देश में शान्ति रखे और इस सेना का खरचा सब मिलकर दें। अगरेजों का यह धर्म रहा कि जो प्रान्त अपने हिस्से का खरचा दे उसको बैरियों से रक्षा करें। ७-इस समय की बड़ी बड़ो रियासतें यह थों। मरहठों के पांच सरदार पेशवा, सिन्धिया, होलकर, गायकवाड़ और भोंसला, निज़ाम और टीपू सुलतान ! सिख लोग भी बलवान होते जाते थे पर अभी तक उनको कारवाहा पंजाब के बाहर न हुई थी,