पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/६३

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मार्किस वेलेजली करें। इस लिये उसको सहायकसेना कहते हैं और जिस रीति पर उसको वेलेजली ने चलाने का विचार किया था वह सहायक रीति के नाम से प्रसिद्ध है। ११-इन तीनों में निज़ाम सब से निर्बल था और मरहठों से बहुत डरता था। उसने वेलेजली का मत तुरन्त स्वीकार कर लिया। सन्धि यह थी कि अङ्गरेज मरहठों से उसकी रक्षा करें और उससे चौथ देने का भार उतरवा दें। निज़ाम ने करांसीसी सिपाही सब छुड़ा दिये और एक अङ्गरेजो पलटन हैदराबाद में पहुंच गई। उस समय निज़ाम वैरियों से निर्भय हो गया और आज तक जितने निज़ाम हुए सब ने निश्चिन्त होकर शान्तिपूर्वक अपने देश का शासन किया है और अगरेजों के मित्र और सहायक रहे हैं। रीपू सुलतान और मरहठे भी वेलेजली को इस उत्तम नोति को मान लेते तो निज़ाम की नाई वह लोग भी ऐसेहाँ हरे भरे देख पड़ते और उनको सन्तान राज करती होती। १२--पर टोपू ने न माना। जो अगरेजी अफसर गवर्नर जनरल को सेना लेकर उसके पास गया था उससे टोपू ने भेंट भी न को। चौथो बार मैसूर के साथ लड़ाई को घोषणा की गई। पेशवा सिन्धिया से डरता था। उसने यह प्रतिक्षा को कि मैं अगरेजों की सहायता करूंगा जो अङ्गरेज सिन्धिया से मुझे बचाय, और मरहठे राजा सब अलग थे । १३--दो अगरेजी सेना, एक बम्बई से और दूसरो मद्रास से मैसूर पहुंची। मद्रास को पलटन का कमानियर जनरल हैरिस था। कर्नल वेलेजली भी उसके साथ था। पहिले टोपू ने बम्बई को पलटन पर धावा मारां पर हार गया। फिर पोछे हट कर दूसरो पलटन पर टूट पड़ा, यहां भी हारा । अब दोनों अङ्रेजो सेनाओं ने उसे आ दबाया और वह अपनी राजधानी श्रीरंगपत्तन में घिर गया।