पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास 2.pdf/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८३ हुई। शाह शुजा करेगा और रूसियों से लड़ेगा। उसने विचार किया कि शाह शुजा को अफ़ग़ानिस्तान की गद्दी पर फिर बैठावें क्योंकि पहले तो वह हकदार था और दूसरे अंगरेजों से मित्रता का भाव रखता था। ३-१८३६ ई० में अंगरेजी सेना सिन्धु नदी को पार करके बोलनदर्रा की राह से बिलोचिस्तान होती हुई कन्दहार पहुंची और कन्दहार को लेकर ग़जनो पर जा खड़ी यहां बड़ो लड़ाई हुई; अन्त को ग़जनी भी ले ली गई। दोस्त महम्मद उत्तर की ओर बुखारा को भाग गया और शाह शुजा अफ़ग़ानिस्तान के सिंहासन पर बैठा दिया गया और एक अंगरेजो शाह शुजा अफ़सर सर विलियम मैकनाटन राज्यप्रबन्ध उसकी सहायता निमित्त नियुक्त हुआ। ४-दूसरे बरस दोस्त महम्मद ने अपने आपको अंगरेज़ों के हाथ समपण कर दिया। वह कलकत्ते भेज दिया गया और यहां अंगरेजों ने उसके साथ मित्रता का बर्ताव किया । पर उसका बेटा अकबर खां जवान और क्रोधो था। वह न आया और उसने बहुत से पठानों को अपने पक्ष में कर लिया। शाह शुजा निर्बल और निरुत्साहो था। राज्य करने की योग्यता उसमें न थी और न प्रजा उससे सन्तुष्ट थी। उसके सिंहासन पर बैठाने के पोछे अंगरेजी सेना का कुछ भाग भारत को लौट आया और थोड़े से सिपाही अफ़सरों की रक्षा के लिये काबुल में रह गये ।