पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्राचीनलिपिमाला. २ शिलाम अधिक प्राचीन मिद्ध होगा और उसके वास्ते शायद ई.म. पूर्व की १० वीं शताब्दी या उसमे भी पूर्व का ममय स्थिर करना होगा'. अब हमें यह निश्चय करना आवश्यक है कि भारतवर्ष में लिखने के प्रचार की प्राचीनता का पता कहां तक चल सकता है. भोजपत्र', ताड़पत्र' या कागज़ पर लिग्वे हुए पुस्तक हजारों वर्ष रह नहीं सकते, विशेषतः भारतवर्ष के जलवायु में, परंतु पत्थर या धातु पर खुदे हुए अक्षर यत्नपूर्वक रहें और हवा तथा बारिश से बचने पावें तो बहुत समय तक पच सकते हैं. इस देश में जो प्राचीन शिलालेख विशेष संख्या में मिले हैं वे मौर्यवंशी राजा अशोक के समय के, अर्थात् ई.स. पूर्व की तीसरी शताब्दी के हैं, और पाषाण के विशाल स्तंभों अथवा घटानों पर खुदे हुए हैं. ये पेशावर से माइसोर तक और काठिावाड़ से उड़ीसा तक अर्थात् करीब करीब सारे भारतवर्ष में मिल चुके हैं. इनसे पाया जाता है कि उस समय सारे भारतवर्ष में लिम्वने का प्रचार भली भांनि था, जैसा कि इस समय है. इन लेग्वों में देशभेद से कितने एक अक्षरों की प्राकृति में कुछ मिन्नता' पाई जाती है और किसी किसी अक्षर के कई रूप मिलते हैं, जिसमे अनुमान होता है कि उस समय भी लिग्वने की कला इस देश में नवीन नहीं, किंतु सुदीर्घ काल मे चली आती थी. अशोक मे पूर्व के अभी तक केवल दो छोटे छोटे शिलालेख मिले हैं, जिनमें से एक अजमेर जिले के बड़ली गांव मे मिला है और इसरा नेपाल की तराई के पिप्राधा नामक स्थान के एक स्नृप के भीतर से मिले हुए पात्र पर, जिममें बुद्धदेव की अस्थि रग्वी गई थी, खुदा है. इनमें मे पहिला एक स्तंभ पर खुद हुए लेग्व का टुकड़ा है, जिसकी पहिली पंक्ति में 'वी[]य भगव[1]' और इमरी में 'चतुरासिति व[4] ' ग्वुदा है. इस लेग्व का ८४ वां वर्ष जैनों के अंतिम तीर्थकर वीर (महावीर) के निर्वाण संवत् का ८४ वां वर्ष होना चाहिये. यदि यह अनुमान ठीक हो तो यह लेग्व ई.म. पूर्व B बू, पेः पृ.१७ (अंग्रेज़ी अनुवाद). भोजपत्र पर लिखा हुआ मय से पुगना मंस्कृत पुस्तक. जो अय तक मिला है. मंयुक्तागम' नामक औद्ध मूत्र है. वह डॉ. स्टाइन को खोतान प्रदेश के खडलिक स्थान में मिला था उमकी लिपिई म की चौथी शताब्दी की मानी जाती है. ताइपत्र पर लिखे हुए पुस्तकों में सब मे पुगना, जो मिला है, एक नाटक का कुछ टिन अंश है. वह ईम की इमरी शताब्दी के आसपास का लिखा हुआ माना जाता है, और जिसको डॉ. लार्म ने छपवाया है (Kiner.. Sanskrit-Texte, pt I) कागज़ पर लिखे हुए मब मे पुगने भारतीय प्राचीन लिपि के चार संस्कृत पुस्तक मध्य पशिमा में यारकंद नगर मे६० मील दक्षिण 'कुगिभर' स्थान से वेवर को मिले, जिनका ममय डॉ हॉर्नली नईम की पांचवी शताब्दी अनुमान किया है (ज.प.सो.बंगा.जि.६२, पृ.). अशोक के लेख नीचे लिखे हुए स्थानों में मिले हैं: शहबाज़गढ़ी (पंजाब के ज़िले यूसफ़ज़ई में): मान्मेग (पंजाब के ज़िल हजाग में): देहली : खालसी (संयुक्त प्रदेश के ज़िले देहरादून में): सारनाथ (बनारस के पास): लाग्मिा अग्गज अथवा रधिमा. लोरिपा नवंदगढ़ प्रथवा मथिमा और रामपुरषा (तीनों उत्तरी बिहार के ज़िले चंपारन में). सहस्राम (बंगाल के ज़िले शाहाबाद में): निग्लिया और मंमिदेई (दोनो नेपाल की नराई में): धौली (उड़ीसा के ज़िले करक में). जौगढ़ (मद्राम के ज़िल गंजाम में); बंगट (गजपताना के जयपुर गज्य में): गिरनार (काठियावाड़ में): सोपारा (यंबई से ३७ मील उमर थाना जिले में), सांची (भोपाल गज्य में); रुपनाथ (मध्यप्रदेश में); मस्की ( हैदराबाद गज्य में ) और सिद्धापुर (माइमोर गज्य में). लिपिपत्र पहिले मै केवल गिरनार के लेख से अक्षर छांटे गये हैं और दूसरे में अशोक के अन्य लेखों से मुख्य मुख्य अक्षर इन दोनों पत्रों को मिलाने से भिन्न भिन्न लेखों में अक्षगं की जो भिन्नता और एक अक्षर के रूप पाये जाते हैं वे स्पष्ट होंगे. अडली गांव मे मिला हुआ लेग्य, जो गजपूताना म्युज़ित्रम् (अजमेर ) में है, ई.स. १९१२ में मुझे " 3 मिला था