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भारतेंदु-नाटकावली

हा! क्या तुम्हें लाज भी नहीं आती? लोग तो सात पैर संग चलते हैं उसका जन्म भर निबाह करते हैं और तुमको नित्य की प्रीति का निबाह नहीं है! नहीं-नहीं, तुम्हारा तो ऐसा सुभाष नहीं था, यह नई बात है, यह बात नई है या तुम आप नये हो गए हो? भला कुछ तो लाज करो।

कित कों ढरिगो वह प्यार सबै,
क्यो रुखाई नई यह साजत हौ।
'हरिचंद' भए हौ कहा के कहा,
अनबोलिबे में नहिं छाजत हौ।
नित को मिलनो तो किनारे रह्यो,
मुख देखत ही दुरि भाजत हौ।
पहिले अपनाइ बढ़ाइकै नेह
न रूसिबे में अब लाजत है॥

प्यारे, जो यही गति करनी थी तो पहिले सोच लेते। क्योंकि---

तुम्हरे तुम्हरे सब कोऊ कहैं,
तुम्हैं सा कहा प्यारे सुनात नहीं।
बिरुदावली आपुनी राखौ मिलौ,
मोहि सोचिबे की कोउ बात नहीं॥