पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१००

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यह अकेली। हवेली । मुझे छोड़ 20 तपय प्यारे की मैं कह लौं कहाँ कहानी ।६ | देखे वही बस जिसे नम बद अपन का निसलाओ 18 बह बन बन बिरहन कुंज-कंजतर पाते । गरचे आज तक तेरी जुस्तजू खासो आम सब किया किये। 'वह गल भुज डालन प्रीत-रीत की घाते । लिखी कितावें हजारों लोगों ने नर ही लिये नंद नांदनी और निराली रातें। बड़े बड़े झगड़े में पड़े हर शख्स जान रहते थे दिये। एक एक की सौ सौ जी में खटकती वातै । उम्र गुजारी, रहे गल्ता पेचां जब तक कि जिये । 'हरीचंद' बिना भई रो रो हाय दिवानी । परम तुम ही वह शैकि किसीके हाथ कभी क्यों कर आओ। पिय प्यार की मैं कह नौं कहीं कहानी ।७।८१ देखे वही बस, जिसे तुम खुद अपने को दिखलाओ । दुख किस्से कहूँ कोई साथ न सखी सहेली । पहिले तो लाखों में कोई बिरला ही भुकता है इधर । मुझे छोड़ गये मनमोहन हाय अपने ध्यान में रहा वह चूर झुका भी कोई अगर । मैं पिय बिनु तड़पूं हाय पास नहिं कोई । पास छोड़कर मजहब का खोजा न किसी ने उन्हें मगर । रही सपने की संपत सी सब सुख खोई । तुमको हाजिर, न पाया कभी किसी ने हर जा पर । जो मैं पिय बिनु नहिं कभी पलंग पर सोई । दूर भागते फिरो तो कोई कहाँ से पाए बतलाओ । सोइ आज सेज सूनी लखि दुख सों रोई । देख वही बस जिसे तुम खुद अपने को दिखलाओ।३ जंगल सी मुझको लगती कोई छाँट कर ज्ञान फूल के ज्ञानी जी कहलाते हैं । हाय गये मनमोहन हाय अकेली कोई आप ही, ब्रहम बन करके भूले जाते हैं। मिला अलग निरगुन व सगुन कोइ तेरा भेद बताते हैं। मेरे बाल-सनेही मुझको छोड़ सिधारे । गरज कि तुझको, ढूंढते हैं सब पर नहिं पाते हैं । तड़पूँ व्याकुल मैं बिन बृज के रखवारे । 'हरीचंद' अपनों के सिवा तुम नजर किसीके क्यों आओ। कहाँ बिलमि रहे किन मोहे पीय हमारे । देखे वही बस, जिसे तुम खुद अपने को दिखलाओ।४।८३ नहि खबर मिली भये निपट निठुर पिय प्यारे । यह बिरह-विथा नहिं जाती है अब झेली । चाहे कुछ हो जाय उम्र भर तुझको प्यारे चाहेंगे। मुझे छोड़ गये मनमोहन हाय अकेली १२ सहेंगे सब कुछ, मुहब्बत दम तक यार निवाहेंगे। तेरी नजर की तरह फिरेगी कभी न मेरी यार नजर । मेरा बाला जोबन पड़ी बिपति सिर भारी । अब तो यों ही, निभैगी यों ही जिन्दगी होगी बसर । दिन कैसे का, भई उमर की ख्वारी । लाख उठाओ कौन उठे है अब न छूटेगा तेरा दर । यह नई आपदा सिर से जात न टारी । जो गुजरेगी, सहगे करेंगे यों ही यार गुजर । कहाँ गए हाय मुझे छोड़ पिया गिरधारी । करोगे जो जो जुल्म न उनको दिलबर कभी उलाहेंगे। भई उन बिन मैं मुरझाय जली ज्यों वेली । सहगे सब कुछ मुहब्बत दम तक यार निबाहेंगे ।१ मुझे छोड़ गये मनमोहन हाय अकेली ।३ आह करेंगे तरसैंगे गम खायेंगे चिल्लायेंगे । गए. सुरत भूल नहीं पाती भी भिजवाई। दीन व ईमाँ बिगाड़ेंगे घर-बार डुबायेंगे। करि याद पिया की हाय आँख भरि आई। फिरेंगे दर दर बे-इज्जत हो आवारे कहलायेंगे। सापिन सी सेज घर बन सों परत दिखाई । रोएँगे हम हाल कह औरों को भी रुलायेंगे। जीना भया भारी दामोदर दुखदाई। हाय हाय कर सिर पीटेंगे तड़पेंगे कि कराहेंगे। 'हरिचंद' बिना भई जोगिन दे गल सेली । सहगे सब कुछ, मुहब्बत दम तक यार निबाहेंगे ।२ मुझे छोड़ गये मनमोहन हाय अकेली ।४।२ रुख फेरो मत मिलो देखने को भी दूर से तरसाओ । वही तुम्हें जाने प्यारे जिसको तुम आप ही बतलाओ । इधर न देखो, रकीबों के घर में प्यारे जाओ। देखे वही बस, जिसे तुम खुद अपने को दिखलाओ । गाली दो कोसो भिड़की दो खफा हो घर से निकलवाओ। क्या मजाल है मेरे नूर की तरफ आँख कोई खोले । कत्ल करो या नीम-बिस्मिल कर प्यारे तड़पाओ । क्या समझे कोई, जो इस झगड़े के बीच आकर बोले। जितना करोगे जुल्म हम उतना उलटा तुम्हें सराहेंगे । खयाल के बाहर की बातें भला कोई क्योंकर तोले । सहेंगे सब कुछ, मुहब्बत दम तक यार निबाहेंगे ।३ ताकत क्या है, मुअम्मा तेरा कोई हल कर जो ले । होके तुम्हारे कहाँ जाँय अब इसी शर्म से मरते हैं । कहाँ खाक यह कहाँ पाक तुम भला ध्यान में क्यों आओ। अब तो यों ही, जिन्दगी के बाकी दिन भरते हैं। भारतेन्दु समग्र ६०