पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१००२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

समर्पण करना, अंगीठी आदि जाड़े का उपचार रखना । द्वादशी - श्री गिरिधर जी का और श्री रघुनाथ जी का उत्सव । त्रयोदशी श्री राधावल्लभ जी का पाटोत्सव । पूर्णिमा यज्ञपत्री अंगीकार । कार्तिक में अगस्त के फूल की माला, दीप दान, रंग से स्वस्तिकादि लिखना, तुलसी समर्पण और सामग्री भोग रखना । मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष तृतीया - बुध अवतार । षष्ठी - श्री गोविंदराय जी का उत्सव । त्रयोदशी - श्री घनश्याम जी का उत्सव । मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वितीया कूख में पधारे। पंचमी श्री रुक्मिणी जी तथा श्री सीता जी का विवाहोत्सव । सप्तमी श्री गोकुलनाथ जी का उत्सव । पौष कृष्ण पक्ष नवमी - प्रभु श्री गो. विट्ठलनाथ जी का उत्सव । पौष शुक्ल पक्ष अष्टमी - अन्नप्राशन, इसी दिन श्री नंदराय जी का जन्म । माघ कृष्ण पक्ष षष्ठी - श्री ठाकुर जी का नामकरण । मकर संक्रांति जिस दिन हो उस दिन छींट के नए रूई के बागा धराना और तिल का लइड्र भोग घरना। माघ शुक्ल पक्ष पंचमी - बसंतोत्सव, खेल आरंभ, सफेद बागा. इसी दिन से अबीर बुक्का केसर चोआ से नित्य खिलाना. सामने बसंत रखना, बसंत राग माघ की पूर्णिमा तक गाना । श्री अद्वैत प्रभु का उत्सव । षष्ठी- श्री यशोदा जी का जन्म । अष्टमी श्री मध्वाचार्योत्सव । त्रयोदशी श्री नित्यानंद प्रभु का उत्सव । पूर्णिमा होली डाँड़ा। फाल्गुण कृष्ण पक्ष सप्तमी श्रीनाथ जी का पाटोत्सव । फाल्गुण शुक्ल पक्ष एकादशी कुंज एकादशी, फूल का मुकुट धरावना, कुंज में खिलाना । पूर्णिमा होलिकोत्सव, सफेद बागा, पाग. मोर चंद्रिका, खेल । श्री चैतन्य प्रभु का उत्सव । चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा दोलोत्सव. सफेद बागा. पाग मोर चंद्रिका, आम के मौर की डोल बाँध कर ठाकुर जी को झुलाना, चार भोग चार खेल होय । पंचमी- मत्स्यावतार । त्रयोदशी-बाराहावतार । - संक्षिप्त नित्य सेवा पद्धति सेवा का मूल यह है कि स्नेह पूर्वक जैसे निज देह वा बालक वा स्वामी की गर्मी सर्दी आदि ऋतु के भारतेन्दु समग्र ९५८