पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

में । वरंच फरिश्ता शब्द ही पार्षद का अपभ्रंश है । जिबरईल का ईश्वर की आज्ञा ला कर मत-प्रवर्तक होने का उदाहरण भी रामानुज संप्रदाय में देख लीजिये । क्रिस्तानों में एक आचार्य जोसफेट करनेल हैं और यह महात्मा शाक्यसिंह की प्रतिमूर्ति हैं । दोनों के पिता राजा, दोनों के जन्म के पूर्व ज्योतिषियों ने कहा था कि यह या तो बड़ा प्रतापी राजा होगा या धार्मिक । दोनों के पिता ने चेष्टा किया कि जिसमें पुत्र संन्यासी न हो और उनको रम्य उद्यान में रखा किंतु संसार की असारता जान कर दोनों ही संन्यासी हो गये और दोनों ने अपने पिता को नये धर्म से दीक्षित किया । सबसे ऊपर आनंद की बात यह है जान, जो मनुष्य जोज़फेट का माहात्म प्रचारक है, लिखता है कि जोजफेट भारतवर्ष में हुआ और हिंदुस्थान से आये विश्वस्त लोगों से हमने उसका चरित्र सुना । अब बतलाइये जोजफेट शाक्यसिंह ही का नामान्तर है कि नहीं ।। धर्म ही पर नहीं नीति संबंधी भी यावत् गल्प मात्र इसी भारत वर्ष से फैलकर और स्थानों में गई हैं । विलसन साहब लिखते हैं – केपस नगर के घोड़ा का उपाख्यान भारतवर्ष में भी प्रचलित है किन्तु भेद इतना है कि भारतवर्ष में घोड़ा हाथी के स्वरूप में है । उर्दू किताबों का यह किस्सा अत्यंत प्रसिद्ध है कि टके की मुर्गी लेंगे, तब उसको अंडे बच्चे होंगे तो उनको बेंच कर बकरी लेंगे, उसको बच्चे होंगे तो उनको बेचकर घोड़ी लेंगे, उसको बच्चे होंगे तो उससे रोजगार करेंगे, रुपया पैदा होगा तब बादशाह की बेटी से शादी करेंगे जब वह शर्बत पिलाने आवेगी और खड़ी होकर विनती करके कहेगी कि मेरे प्यारे दूध पीओ तो हम एक लात मारेंगे, यह कह कर लात जो चलाया तो बरतन फूट गए । इसी से मसल निकली है कि तुम्हारा तो बर्तन फूटा हमारी गृहस्थी ही खराब हो गई । अंग्रेजी में इस गल्प को और तरह से कहते हैं । फरासीस में लाफेन्टन कवि ने इसको पैरट गोपिनी के नाम से लिखा है जिसने पूर्व की भाँति सोचते सोचते अपना दधिभाजन फोड' डाला । संसार की और भाषाओं में भी. रूपांतर से यह गल्प प्रसिद्ध है। परंतु इसका मूल कहाँ है ? भारतवर्ष में । पंचतंत्र देखिये उसमें यह किस्सा स्वभाव कृपण नामक ब्राहमण के नाम से प्रसिद्ध है, और हितोपदेश में देवशर्मा के नाम से । एक विद्वान ने लिखा है कि ब्राहमण से एक साधारण चर्म विक्रेता वा कुंभकार इत्यादि नाम हुआ । अंत में जयसुरसिक लाफेण्टन ने इस गल्प को लिखा तो इस शुष्क ब्राहमण के स्थान पर नवयौवना ग्वालिनि को पुस्तक में स्थान दिया । अब कहिये कि कैसे संस्कृत वेश त्याग कर यह सब किस्से और भाषा में हुए और इतनी दूर पहुँचे । इस छोटे छोटे किस्सों में एक ऐसी संजीवनी शक्ति है कि राज्य और धर्म का हेर फेर हो जाय और भाषा का परिवर्तन हो जाय परंतु यह सब छोटी छोटी गल्प बालकों और मुग्ध स्त्रियों के मुख द्वारा एक ही रूप से अनेक सहन कोस तक प्रचलित रहेगे । महात्मा मोक्षमूलर लिखते हैं 'उन्नीसवीं शताब्दी में इस खीष्ट धम प्रधान देश में हम लोग अपने बालकों को जो ऐहिक और पारलौकिक ज्ञान की गल्पों में शिक्षा देते हैं वह धर्म विरोधी ब्राहमणों और बौद्धों की पौत्तलिक धर्म की पुस्तकों से संग्रहीत है । अब इस बात को कोई न मानेगा किंतु हजार दो हजार बरस पहले भारतवर्ष के किसी निर्जन वन और क्षुद्र पल्लियों में भ्रमण करने ही से यह सव्य बीज प्राप्त होता, जो अब समस्त पृथ्वी में विस्तृत है और सरस बालकों के हृत क्षेत्र में सदा लहलहाता रहेगा । बड़े बड़े विद्वान भी किसी अपनी नीति को इस सुरीति पर सर्व हृदयग्राही और चिरस्थायी नहीं कर सके हैं जैसा कि इन गल्प रचयिताओं ने सहज हृदयग्राही रचना की है । किंतु ये बुद्धिमान लोग कौन थे यह ज्ञात नहीं और संसार के और और मानवोपकारियों की भाँति विस्मृति देवी के अपार उदर में यह भी शयन करते हैं । यदि दो सहस्र वर्ष पूर्व कोई भारत वर्ष में जाता तो ये महात्मा लोग मिलते । अब केवल हम यही कह सकते हैं कि यह अति चातुर्य उन्हीं लोगों का है जिनको अब कोई कोई निगरो पुकारते हैं ।" 2. See Plato's Theology Concerning spiritual nature. 8. See Professor Max Muller's Sanskrit Literature भारतेन्दु समग्र ९७०