पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०१९

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गोपालदास, हरिदास, रामगोपाल, राधा, लक्ष्मी, रुक्मिन, गोपी, जानकी आदि। विश्वास न हो कलेक्टरी के दफ्तर से मर्दुमशुमारी के काग़ज़ निकाल कर देख लीजिए वा एक दिन डाँकघर में बैठकर चिट्ठियों के लिफाफों की सैर कीजिए। (४) ग्रंथ, काव्य, नाटक आदि के, संस्कृत या भाषा के, जो प्रचलित हैं उन को देखिए। रघुवंश, माघ, रामायण आदि ग्रंथ विष्णुचरित्र के ही बहुत हैं। (५) पुराण में भारत, भागवत, वाल्मीकिरामायण यही बहुत प्रसिद्ध हैं और यह तीनों वैष्णवग्रंथ हैं। (६) व्रतों में सब से मुख्य एकादशी है वह वैष्णव व्रत है और भी जितने व्रत हैं उन में आधे वैष्णव हैं। (७) भारतवर्ष में जितने मेले हैं उन में आधे से विशेष विष्णुलीला, विष्णुपर्व या विष्णुतीर्थों के कारण हैं। (८) तिहवारों की भी यही दशा है। वरंच होली आदि साधारण तिहवारों में भी विष्णुचरित्र ही गाया जाता है। (९) गीत, छंद चौदह आना विष्णुपरत्व हैं, दो आना और देवताओं के। किसी का व्याह हो, रामजानकी के व्याह के गीत सुन लीजिए। किसी के बेटा हो नंद बधाई गाई जायगी। (१०) तीर्थों में भी विष्णुसंबंधी ही बहुत हैं। अयोध्या, हरिद्वार मथुरा, वृंदावन, जगन्नाथ, रामनाथ, रंगनाथ, द्वारका, बदरीनाथ आदि भली भाँति याद कर के देख लीजिए। (११) नदियों में गंगा, यमुना मुख्य हैं, सो इन का माहात्म्य केवल विष्णुसंबंध से है। (१२) गया में हिंदू मात्र को पिंडदान करना होता है, वहाँ भी विष्णुपद है। (१३) मरने के पीछे 'रामरामसत्य है' इसी की पुकार होती है और अंत में शुद्ध श्राद्ध तक 'प्रेतमुक्ति प्रदोभव' आदि वाक्य से केवल जनार्दन ही पूजे जाते हैं। यहाँ तक कि पितृरूपी जनार्दन ही कहलाते हैं। (१४) नाटकों और तमाशों में रामलीला, रास ही अति प्रचलित है। (१५) सब वेद पुस्तकों के आदि और अंत में लिखा रहता है 'हरिः ॐ'। (१६) संकल्प कीजिए तो विष्णुः विष्णुः। (१७) आचमन में विष्णु विष्णु। (१८) शुद्ध होना हो तो यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं। (१९) सुग्गे को भी राम ही राम पढ़ाते है। (२०) जो कोई वृत्तांत कहै तो उसको राम कहानी कहते हैं। (२१) लड़कों को बाल गोपाल कहते है। (२२) छपने में जितने भागवत, रामायण, प्रेमसागर, ब्रजविलास छापी जाती है और देवताओं के चरित्र उतने नहीं छपते। (२३) आर्यलोगों के शिष्टाचार में रामराम, जयश्रीकृष्ण, जयगोपाल ही प्रचलित है। (२४) ब्राह्‌मणों के पीछे बैरागी ही को हाथ जोड़ते हैं और भोजन कराते हैं। (२५) विष्णु के साला होने के कारण चंद्रमा को सभी चंदामामा कहते हैं। (२६) गृहस्थ के घर घर तुलसी का थाला, ठाकुर की मूर्ति, रसोई भोग लगाने को रहती है। (२७) कथा घाट बाट में भागवत ही रामायण की होती है। (२८) नगरों के नाम में भी रामपुर,[१] गोविंदगढ़, रघुनाथपुर, गोपालपुर[२] आदि ही विशेष हैं। (२९) मिठाई में गोविंदबड़ी, मोहनभोग आदि नाम
  1. विष्णु संबंधी अनेक गाँव हैं, कई एक यहाँ पर लिखे जाते हैं। जिला गया के जहानाबाद थाना के इलाके में विसुनगंज गाँव है। जिला गया के नबीनगर थाना के इलाके में किसुनपुर बटाने के किनारे पर है, यहाँ मेला लगता है। जिला गया के दाऊदनगर थाना के इलाके में गोपालपुर गाँव है। जिला गया के शहरघाटी थाना के इलाके में नारायणपुर गाँव है।
    बरेव से तीन कोस पूरब सकरी नदी के बायें किनारे गोविंदपुर बैजनाथ जी की कच्ची सड़क पर भारी बाजार है। यहाँ लकड़ी और बहुत सी जंगली चीज बिकती हैं। यहाँ से दो कोस नैऋत्यकोन में एक तारा गाँव से आध कोस दक्खिन महभर पहाड़ में ककीलत बड़ा भारी और प्रसिद्ध झरना है, इस में सदा पानी मोटी धार से गिरा करता है। पानी गिरते नीचे एक अथाह कुंड बन गया है। पानी इस झरने का बहुत निर्मल और ठंढा रहता है। यह स्थान परम रम्य और मनोहर लगता है। मेष की संक्रांति में (बिसुआ) बड़ा मेला लगता है। गोविंदपुर के आस पास बिसुनपुर, सुंघड़ी और पहाड़ के पार सिऊर रपऊ आदि बड़े बड़े गाँव है। सिऊर में दो बड़े तालाब हैं और एक पुराने राजगृह का चिन्ह देख पड़ता है।
    सीतापुर के वायु कोन। सदर मुकाम दरयाबाद लखनऊ से ४५ मील वायुकोन उत्तर को झुकता हुआ है।
  2. एक गाँव असनीगोपालपुर है। वहाँ के नरहरि कवि ने अपने परिचय में कहा है: !
    कवित्त! नाम नरहरि है प्रशंसा सब लोग करैं हंसहू से उज्वल जगु व्यापे हैं। गंगा के तीर ग्राम असनीगोपालपुर मंदिरगोपाल जी को करत मंत्र जापे हैं। कबि बादशाही मौज पावै बादशाही वो जगावै बादशाही जाते अरिगन कांपे हैं। जब्बर गनीमन के तोरिबे को गब्बर हुमायूं के बब्बर अकब्बर के थापे हैं॥१॥

वैष्णवता और भारतवर्ष ९७०