पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०२

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"हरीचंद' बिलम न कीजेपीजे दरसमदान/१०/ गोला-राई बलभाई। राधानायक संजोग-रेन वियोग-दमा मम दुख जीयन के तुम हो इक रखवारे । हमरे तो सब कुछ तुमही हो गिरधारी । "वस साए ।२ बिछरी में जनम जनम की फिरी सब जग छान। अबकी नछोड़ों प्यारे यही राघोहे अन । तुम बिनु ब्याकल धीरन आवतजीजे अरजयहमान। 'हरीचंद' मोहिं जानि आपनी करिये जीवन दान ।९॥ हमे दरसन दिया जाओ हमारे प्रान के प्यारे । तेरे दरसन को ऐप्यारे तरस रही आंख बरसों से। इन्हें आकर के समझाओ हमारे आँतो के तारे, सहि सकत न कांठन बियोग-गिन तन दागे । | छिनई मन मेरे होह इगन मो न्यारे । अब उन विनु छिन छिन प्रान दहन दुख लागे । घनश्याम गोप-गोपी-पति 'पहिले तो सुंदर मोहन प्रीति बढ़ाई । निज प्रमीजन-हित नित नित नय सुखदाई सब ही बिधि प्यार अपनी कार वृन्दाबन-रन्छक सुखदै बहु भाँतन नित नव लाड़ लड़ाई । प्रानह से प्यारे मान अब तोडि प्रीति मोहिं छोडि गए. ब्रजराई । जसदानंद बीतत जागे। छिनई मत मेरे होड़ दृगन सों न्यारे । अब उन दिनु छिन प्रान दहन दस सागे । दरसन बिन तन रोम रोम दुख पाग। क्या कर सखी कुछ और उपाय बताओ। तष सुमिरन धिनु यह जीवन विष सम लागे । i मेरे पीतम प्यारे मुझसे धन मिलाओ तुमरे संयोग पिनु तन बियोग दर वा जिय लगी घिरह की भारी अगिन बुझाने । अकुलात प्रान जब कांठन मदन मन जाग मैं धरी मौत मर रही मिलाइ जिलाश्रो । 'हरीचद' श्याम-सग जीवन-सुख सब भागे । चिनहूँ मत मेरे होहु द्गन सो न्यारे । अब उन न बिनु छिन छिन प्रान दहन दुख लागे ४ि८७ तुमही मम जीवन के अवलंब कन्हाई । जबतक फंसे थे इसमें तबतक दुख पाया भी बहुत रोए। तुम बिनु सब सुख के सात परम दुखदाई । मुंह काला कर बखेडे का हम भी सुख से सोए । नुव देखें ही सुन होत न और उपाई । बिना पात इसमें फंस कर रंज सहा हैरान रहे तुमरे बिनु सब जग सूनो परत है मेरो मजा बिगाड़ा, अपना नाहकी जीवनधन को परेशान रहे। इधर उधर झगड़े में पड़े फिरते वस सर-गरदान रहे। छिनई मत अपना नोकर, कहाते बेवकूफी नादान रहे । तुमरे-विनु इकछन कोटि कप सम भारी । बोझफिक्र का नाहक को फिरते थे गरदन पर ढोए । तुमरे-चिनु स्वरगह मुंह काला कर, बखेड़े का हम भी सुख से सोए ।१ तुमरे संग बनह घर सो ढि बनधारी । मतलब की दुनिया है कोई काम नहीं कुछ आता है। अपने हित को. मुहब्बत सब से सभी बढ़ाता है। 'हरिचंद हमारे राखो कोई आउ श्री कल कोई सब छोड़ के आखिर जाता है। छिनई मत मेरे होहु गन गरज कि अपनी गरज को सभी मोह फैलाता है। बरवा इसे जमा समझे थे तब तकथेस वे सब कुछ खोए। मुंह काला कर बखेरे का हम भी (धुन-'मोरितो जीवन राधे' इस चाल पर। विसको अमृत समझे वे हम वह तो जहर हलाहल था। मोहन दरस दिखा जा । मीठा जिसको जानते थे वह इनार का फल था। व्याकल अति प्रान-प्यारे दरस दिखा जा । जिसको सुख का वर समझे थे वह तो दुख का जंगल था। जिनको सन्ना समझते थे वह झूठों का दल था। जीवन फल की प्राशा में उलटे हमने थे विष बोए । | मुंह काला कर, बखेडे का हम भी र से सोए ।३ जहाँ देखो वहीं दगा और फरेब और मकारी है। दरस मोहिदीने हो पिय प्रान । दरस दीजै अपर पीजे की परस सुजान । दुख ही दुख से, बनाई यह सब दुनिया सारी है। पूरबी रेखता लगाई। नैनो के तारे । मेरे होई इगन सो न्यारे । महा नरक दुखवारी । मान दुलारे । ते न्यारे । आदि मध्य ओ अंत एक रस दुख ही इसमें जारी है। कृष्ण-भजन बिनु. और जो कुछ है वह सवारी है। 'हरीचन' भव पंक छूटे नहि विना भजन यम के धोए। मुंह काला कर, पखेड़े का हम भी सुध से सोए ।४८८ पिय प्राननाथ मनमोहन सुंदर प्यारे ? भारतेन्दु समय ६२