पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- -war he 1 और आप तप करने चला गया । कुंडला भी अपनी सखी को गले लगाकर दुलहा दुलष्ठिन दोनों को कुछ हित की बातें सिखाकर तप करने गई । कुंआर उस कन्या (मदालसा) को घोड़े पर बिठाकर उस पाताल की गुफा से बाहर निकलने लगा पर उसी क्षण राक्षसों की फौज ने चोर चोर कह कर आन घेरा और मदालसा को उससे छुड़ाना चाहा । कुंजर ने बहादुरी से उन सबों को बात की बात में मार गिराया और आप राजी खुशी अपने घर आया । पिता के पैरों पर पड़कर सब हाल कह सुनागा । राजा-रानी बहू-बेटा पाकर बड़े प्रसन्न हुए और सभ शोग सुख से रहने लगे । राजा ने कुंवर को आज्ञा दे दी थी कि तुम नित्य घोड़े पर चढ़कर मुनियों को रखपाली किया करो । कुंअर घोड़े पर चढ़ा एक दिन यमुना किनारे के मुनियों की रखवाली कर रहा था कि एक आक्षम देखा । इस जनम में उस पातालकेतु राक्षस का भाई ताशकेतु कपटी मुनि भन कर बैठा था । कुँआर को देखते ही पुराना बेर याद करके वह बोला कि कुंअर तुम अपने गहने तमको दो और जब तक हम पानी में जाकर वरूण की पूषा करके न फिरै तब तक तुम हमारे आश्रम की चौकी दो । राजपुत्र ने सब गहना उतार दिया और उस कुटीचर की कुटी का पहरा देने लगा । वह दुष्ट गहना लेकर जल में डूबकर माया से कुंअर के महलों में गया और मदालसा से बोला कि हमारे जनम में कृतध्याज को एक राक्षस ने मार डाला और हिनहिनाते हुए उस विचारे घोड़े को भी घसीट ले गया । शुद्र तपसियों से क्रिया कराके उसका गडना लेकर मैं तुम को देने आया हूँ, ।। इतना कहकर आभूषण सब फेंक दिये और आप चलता हुआ । मदालसा ने उसी समय पति के दुःख से प्राण त्याग किये । महल में हाहाकार मच गया, विधर देखो उधर कुहराम पड़ा हुआ था और दर दीवार से हाय कुंर हाय बहू की आवाज आती थी । राजा शबुशित धीरज रखकर बोला कि इतना क्यों रोते हो ? मुनियों की रक्षा में हमारा पुत्र यश कमाकर मारा गया. इसका क्या सोच है। उसकी माँ भी बोली कि बड़ों का यश बढ़ा कर जो क्षत्री युद्ध में मरे उसका क्या रोना और ऐसी बहु का भी क्या सोच को पति के सब सुख भोगकर अन्त में पति लोक उसके साथ ही गई. उठो क्रिया करो और सोच दूर करो । राजा ने नगर के माहर सब लोक रीति किया और बेटे बहू को पानी देकर घर फिरा । इधर कपटी मुनि भी कुंअर से आकर बोला कि मेरा काम हो गया, जापशा कल्याण हो, अब पर सिधारिये । कुँआ जब नगर में आया तो सषको उदास पाया । कुंअर को देखते ही बधाई बधाई का चारों ओर से शोर मच गया । कुंवर बहुत चक्रपकाया कि यह मामला क्या है ? अन्त में घर पर गया और सम हाल सुनकर बहुत ही पथड़ाया । माँ बाप के डर से रो तो न सका पर अपनी पतिव्रता मान चारी से बिछुड़ने से बहुत ही उदास हो गया और यह प्रतिज्ञा कर ली कि मैं प्रान तो नहीं देता पर अब किसी दूसरी स्त्री से जन्म भर न मिलूंगा । तब से इस सुख से वंचित है और यदि संसार में उसका कोई हित है तो इतना ही है कि मदालसा उसको फिर मिले पर यह सिवा ईश्वर के कोन कर सकता है?' ने कहा 'पुत्र ईश्वर की बया और मनुष्य के परिश्रम के आगे कोई बात कठिन नहीं ।' उसी दिन से अपवर ने हिमालय पर्वत पर सरस्वती की आराधना करनी आरंभ कर दी । जय सरस्वती प्रसन्न हुई. कहा 'वर-मांगो' तो नागराज ने यह वर लिया कि उन्हें और उनके भाई कंबल को संगीत विद्या संपूर्ण रीति से अजाय । वर पाकर केवल अश्वतर दोनों कैलाश को गए और गाकर श्री भोलानाथ सदाशिव को ऐसा रिमाया कि महादेव पार्वती साथ ही बोले "मांगो क्या चाहते हो" । दोनों ने हाथ जोड़कर कहा "नाथ ! कुवजनाच की स्त्री मदालसा उसी रूप और अवस्था से हमारे घर में फिर जन्म ले" । "एवमस्त" त्रिनयन जी गे कहा और यह भी आता दिया कि तुम्हारी साँस से आज के तीसरे दिन मदालसा उत्पन्न होगी। तीसरे दिन मदालसा का जब जन्म हुआ तो नागधिप ने सबसे छिपाकर उसको निज के जनाने में रक्या । एक दिन बातो बात में अश्वतर ने कहा 'बेटा भज्ञा हम भी तुम्हारे मित्र को देखें । नाग कुमार उसी समय कुवलयाश्व के पास आए और बोले 'हम आप से कुछ जाँचते हैं । कृतध्वज बोला 'मित्र, समारे धन्य भाग. इतने दिन लोग मेरे साथ रहे कभी कुछ न कहा, आज भला इतना कहा तो, मैं राज्य और प्राण भी देने को प्रस्तुत है।' चला और वे दोनों उसका हाथ पकड़ कर यमुना में कूद पड़े । जब पैर तल पर लगे और कुंअर ने आंख कुमारों ने कहा मेरे पिता जी आप को देखा चाहते हैं । राजकुमार उन ग्राहमण बने हुए नागकुमारों के साथ खोली तो देखा कि एक रत्नमय नगरी में खड़े है । नागपुत्र कुमार को लेकर नागेश्वर के सामने गए । कुमार नाग लोगों का वैभव देख कर चकित हो गया। उसके नगर के जौहरी जितनी बडी मनियों का ध्यान भी नहीं कर सकते, वैसी वहां अनेक देखने में आई । नाग सम्राट को तीनों कुमारों ने साष्टांग दण्डवत किया । अश्वतर Instan मदालसोपाख्यान ९७९ आप HAR