पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कोई कहता था आप से सुंदर संसार में नहीं, कोई कसमें खाता था, आपसा पंडित मैंने नहीं देखा, कोई पैगाम देता था चमेली जान आप पर मरती हैं, आपके देखे बिना तड़प रही हैं, कोई बोला हाय ! आपका फलाना कवित्त पढ़कर रात भर रोते रहे, दूसरे ने कहा आपकी फलानी गजल लाला रामदास की सैर में जिस वक्त प्यारी ने गाई सारी मजलिस लोट-पोट हो गयी, तीसरा ठंडी सांस भरकर बोला धन्य है आप भी गनीमत हैं बस क्या कहें कोई जी से पूछे, चौथा बोला आपकी अंगूठी का पन्ना क्या है काँचका टुकड़ा है या कोई ताजी तोड़ी हुई पत्ती है, एक मीर साहब चिड़िया वाले ने चोंच खोली, बेपर की उड़ायी बोले कि आपके कबूतर किससे कम हैं वल्लाह कबूतर नहीं परीजाद हैं, खिलौने हैं, तसवीर हैं । हुमा पर साया पड़े तो उसे शहबाज बना दें, ऐसे ही खूबसूरत जानवरों में ईसाई लोग खुधा का नूर उतरना मानते हैं, इनको उड़ते देखकर किसके होश नहीं उड़ते, कसम कलामुल्लाह शरीफ की मटियाबुर्जवालों ने ऐसे जानवर ख्वाब में नहीं देखे । एक दलाल घोड़े की तारीफ कर उठा, जौहरी ने खच्चरों की तरफ बाग मोड़ी, बजाज बाग की स्तुति में फूल बूटे कतरने लगा, सिद्धान्त यह कि मैं बिचारा अकेला और वाह वाहें इतनी कि चारों ओर से मुझे दबाए लेती थीं और मेरे ऊपर गिरी क्या फिसली पड़ती थीं। यह तो दीवानखाने का हाल हुआ अब सीढ़ी का तमाशा देखिये । चार पाँच हिंदू, चार पाँच मुसलमान सिपाही, एक जमादार, दो तीन उम्मेदवार और दस बीस उठल्लू के चूल्हे, कोई खड़ा है, कोई बैठा है, हाय रुपया सबके जबान पर, पर इसमें सब ऐसे ही नहीं कोई-कोई सच्चा स्वामिभक्त भी है । कोई रंडी के भडुए से लड़ता है, रुपये में दो आना न दोगे तो सरकार से ऐसी बुराई करेंगे कि फिर बीबी का इस दरबार में दरशन भी दुर्लभ हो जायगा, कोई बजाज से कहता है कि वह काली बनात हमें न ओढ़ाओगे तो बरसों पड़े झूलोगे रुपये के नाम खाक भी न मिलेगी, कोई दलाल से अलग सट्टा बट्टा लगा रहा है, कोई इस बात पर चूर है कि मालिक का हमसे बढ़कर कोई भेदी नहीं जो रूपया कर्ष आता है हमारी मारफत आता है, दूसरा कहता है बचा हमारे आगे तुम क्या पूचल चर हो औरतों का भुगतान सब मैं ही करता हूँ। इन सबों में से एक मनुष्य को आपलोग पहचान रखिए, इससे बहुत काम पड़ेगा । यह नाटा खोटा अच्छे हाथ पैर का साँवले रंग का आदमी है, बड़ी मोंछ, छोटी आँखें, कछाड़ा कसे, लाल पगड़ी बाँधे, हरा दुपट कमर में लपेटे, सफेद दुपट्टा ओढ़े, जात का कुनबी है । इसका नाम होली है । होली आजकल मेरे बहुत मुंह लग रहा है, इसीसे जो बात किसी को मुझ तक पहुँचानी होती है वह लोग उससे कहते हैं । रेवडी वास्त मसजिद गिरानी इसी का काम है। भारतेन्दु समग्र ९८२