पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०३

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Oh. Volo सिथिल भई हाय यह काया है जीवन ओठ पर आया । सूखे विरह में तारे पानी इन्हें पिला ता। भला अब सो करो माया मेरे प्रानों के रखवारे । सब लोक-गाज खोई दिन-रैन बैठ रोई। अरब हरिचंद की मानो जड़कपन अभी भी मत ठानो। जिसका कहीं न कोई उसका नो जी बचा जा । बचालो प्रान दरसन दो अजी प्रजराज के बारे ।१२ मुझको न यो भुलाओ मड शर्म जी में गाओ। ठुमरी अपनों को मत ससाश्री ए प्रान-प्यारे राजा । 'हरिनंद' नाम प्यारी दासी है जो तुम्हारी । पियारे सैयाँ कोने देस रहे कांस मरती है यह विचारी आकर उसे जिला जा ।५० जोचना को सब रंग चूसि । बसी बजा के हम को बुलाना नहीं अच्छा । "हरीचंद भये निठुर श्याम घर-पार को यो हमसे छुड़ाना नहीं अच्छा । अब पहिले तो मन मुसि ।१३ घर-बार छढ़ाते हो तो फिर हमको न छोड़ो। अपनो को यों दामन से हुड़ाना नहीं अन्डा । पियार पिया कौन देश रहे छाय । करना किसी पैरहम इक अदना सी बात पर । का पर रहे बिलमाय । मुतखक किसी पे ध्यान न खाना नहीं अच्छा । मेरी सुध विसराय प्रेम सब जिन सों दूर भुलाय । हम तो उसी में खश है खुशी हो जो तुम्हारी । 'हरीचद' पिय नितुर बसे कित जोगिन हमाह बनाय।१४ फिर हम से छिपा कर कहीं जाना नहीं अच्छा । पिया प्यार तोहि विनु रहयो नाहि जाय । गाश्रो जो चाहो बसी में राग हजारों। कौन सो करौं मैं उपाय। स्ट नाम की मेरे ही गाना नहीं रहा । कहत 'चद्विका धाइ मिलो अबरोह गरे लपटाय ।९५ मिल जायेंगे हम कंज में मौका जो मिलेगा। आजो पिया प्यारे गरे लग जाओ। गलियों में हमारे सदा आना नहीं अनट्रा । काहे जिस तरसाओ, कहत 'चद्रिका' पाइ मिलो 'हरिचंद' तुम्हरे ही हैं हम तो सभी तरह । अब जिय की जनि जुड़ाओ ।५६ | यो अपने गुलामों को सताना नहीं अच्छा ।१०० खेमटा अथ बॅगला गान अब ना आओ पिया मोरि सेजरिचा । प्रानप्रिय शशि-मुख विदाय दाओ आमारे । जात बिदेस छोड़ि तुम हमसे शून्य देह लोए जाबो प्रान दिये तोमारं । हनि हनि हिय में विरह कटरिया । करि हे बिनय हइया सदय आगारे कहत 'चंद्रिका' हरीचंद पिय जाओ विदाय दाभो जाई देशांतर ।१ वहीं जहाँ लाए नजरिया ।९७ प्राननाथ निदय हव विदाय चेओ ना । रेखता तोमा बिन प्रान, नाहि रखे प्रान । मोहन पिय प्यारे टुक मेरे ढिग आव। किसे पाव वान आमाय बलो ना। बारी आमि हेअबला, ताहा ते सरला, गई सूरत के बदन तो दिखाय । तरस गए अंग अंग गर मैं लपटाव । बिरह-ज्वाला, प्राने सधे ना ।२ तेरी मै चेरी मुझे मरत सो जिलाव । जाई जाई करे नाथ दिओ नाहे जातना । वही रूप वही अदा दीने निव धाव । । तोमार विच्छेदे ए जीवन रखे ना । प्यारे ! 'हरिचदहि' फिर आज भी दरसाव ।५८ पुन : ए नयन शशांक-बदन करिने शांन को ओहे बलो ना। दिलदार चार प्यारे गलियों में मेरे आ जा। तोमारे ना हेरे प्रान जेकी करें कि कब आँखें तरस रही है सूरत इन्हें दिखा जा। तोमारे, तुमि किये भावना १३ चेरी हूँ तेरी प्यारे इतना तो मत सता रे । लाखों ही दुख सहा रे टुक अब तो रहम खा जा प्राननाथ विदेशे त जेते दिबना । तेरे ही हेत मोहन छानी है खाक बन बन । जावे जाओ कात किंतु हे नितात, दुख झेले सर प : अनगननाव तो गले लगा जा । आमारे एकांत. भर कात पाये ना । मन को रई मैं मारे कब तक बता दे प्यारे । तोमार विहन, ए छार जीवन प्रम तरंग ६३