पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०३०

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भीतर छिपा कोई पुन्य पाप रहा हो तो उस को हम लोग नहीं जानते इस का जानने वाला केवल तू ही है।' इस रिपोर्ट पर विदेशी मेंबरों ने कुछ क्रुद्ध होकर हस्ताक्षर नहीं किया । रिपोर्ट परमेश्वर के पास भेजी गयी । इस को देखकर इस पर क्या आज्ञा हुई और वे लोग कहाँ भेजे गए यह जब हम भी वहाँ जायगे और फिर लौट कर आ सकेंगे तो पाठक लोगों को बतलावेंगे । या आप लोग कुछ दिन पीछे आपही जानोगे । स्तोत्र-पंचरत्न रचना काल सन् १८७४ से १८७८ के बीच। स्तोत्र पंचरत्न के नाम से श्री वेश्यास्तवराज, स्त्रीसेवापद्धती, मदिरास्तवराज, कंकड स्तोत्र और अंग्रेज स्तोत्र का संग्रह खंगविलास प्रेस बांकीपुर से छपा। जिसकी भूमिका भारतेन्दु जी ने सन् १८८२ में लिखी थी, जो दूसरी बार १८८६ में छपी। इस बार इसमें एक और लेख 'ईश्वर बड़ा विलक्षण है' जुड़ गया। यह बनारस की म्यूनिसपैलिटी पर व्यंग है। बरसात में कंकड़ों की करामात पर लिखा गया यह लेख भारतेन्दु के उत्कृष्ट हास्य का नमूना है। भूमिका प्रिय पाठकगण ! यद्यपि ये स्तोत्र हास्यजनक हैं तथापि विज्ञ लोग इनसे अनेकहों उपदेश निकाल सकते है। शोच का विषय है कि इन दिनों हम आर्य लोगों का दीन भारतवर्ष मांस मदिरा वेश्यादि दोषों से ग्रस्त हो रहा है । यदि इसके बचाव का कोई उपाय शीघ्न न किया जायगा तो हम लोगों को बड़ी भारी क्षति सहनी पड़ेगी अतएव शीघ्र ही इन आपत्तियों से भारतवासियों को बचना उचित है। बकरी विलाप को इसमें सम्मिलित करने में केवल यही प्रयोजन है कि इस दीन दुखिया के विलाप को सुनकर मांसलोलुप महाशय बकरों पर दया करें और वृथा ही अपनी जिवा के स्वादार्थ इन सहायहीन विचारों के प्राण न लें । संसार में सहस्रों ही एक से एक उत्तम स्वादिष्ट खाद्य-वस्तु ईश्वर ने उत्पन्न की है कुछ मास के सिर में सुरखाब का पर लगा ही नहीं है अतएव आशा है कि पाठकगण इस घृणित और जघन्य कार्य से अपना अपना हाथ खींच लेंगे। हरिश्चंद्र १. मित्र विलास खण्ड ८ सं.४०, १९ जून सन् १८८५ में तथा कविवचन सुधा १ जून अंक ८ सन् १८७५ में प्रकाशित यह लेख स्वामी दयानन्द और केशव चन्द्र सेन के परलोक गमन पर लिखा गया था। बाद में कानिकल में उसका अंग्रेजी अनुवाद भी HAR भारतेन्दु समग्र ९८६