पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०३१

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स्तोत्र पंचरत्न श्री वेश्यास्तवराज नासिनी ।। (महा संस्कृत ओं अस्य श्री वेश्यास्तवराज महामाला मंत्रस्य भण्डाचार्य : श्री हरिश्चन्द्रो ऋषि . द्रव्योवीज मुख कीनक वारवधू महादेवता सर्वस्वाहार्थं जपे विनियोग : । अथ अंगन्यास : । द्रव्य हारिण्यै हृदयाय नम : जेरपायी धारिण्यै शिरसे स्वाहा चोटी काटिन्यै शिखायै वषट् प्रत्यंगालिंगन्यै कवचाय हुकामान्ध कारिण्यै नेवाभ्यां वौषट विषयार्थिन्यै अस्त्रत्रयाय फट् । अथ करन्यास: सर्व शून्य कन्यै अंगुष्टाभ्यान्नम : लोकवेदनिषेधिन्यै तर्जनीभ्यान्नम : मध्यम विधायिन्यै मध्यमाभ्यान्नम : दुनैमदायिन्यै अनामिकाभ्यान्नमः कनिष्ठकारिण्यै कनिष्ठिकाभ्यान्नम : आसमुद्रान्त कर ग्राहिण्यै करतल कर पृष्टाभ्यान्नम: ।। अथ ध्यानम पद्माकारामुखां कपोल ललितां माधुर्य पूर्णाधरां । अत्युच्चस्तनमण्डला विषवलै : पूर्णां घटकांचनी । मिथ्याप्रेममयी तर्नु विदधतीं सर्वस्य संहारणी । ध्यायेद्वार वधू सदैव हृदये धमार्थ विच्छित्तये ।। अथ स्तोत्र प्रारम्भ । नौमि नौमि देवि रण्डिके । लोक वेद सिद्ध पथ खण्डिके ।। कोटि यक्षराज कोप नासिनी । स्वार्थ सिद्धि हेतही विलासिनी ।। दृष्टि मात्र मन्द हासिनी । कामि बृन्द काम जातरूप जात शालिनी । नव्य न्यून मुण्ड मालिनी । क्षेत्रपाल बाहनादि पालिनी ।। काशिका मोक्ष दायिनी । पोर्ट ब्रांडिकादि मद्यपाचिनी ।। केश पाश शोभिनी । द्रव्य दर्श भव्य भाव लोभिनी ।। काम अग्नि ज्वाल माल कुण्डिनी ।। कामि चित्त पक्षिका भुसुण्डिनी ।। पुन्य तीर्थ यात्रि पावनी । युक्त काम छावनी ।। मद्यप प्रमोद पीढ़िका । एनलाइटेंड पंध सीढ़िका ।। पेशवाज अंग शोभितानना। गिलटभूषणा प्रमोद कानना ।। मातृ पितृ बन्धु शील भक्षिका । लोक लाज नाश हेतु तक्षिका ।। गुप्त द्रव्य पुज गेह रक्षिका । यौवनासवार्थ भक्षिका ।। प्रवास सैन्य स्तोत्र पंचरत्न ९५७ 65