पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०३४

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गौडीमाध्वीतधापैष्टी माद्याचाद्यास्वरूपिणी । कुलीन कुल सर्वस्वा तन्त्र सारामनोहरा ।। मकार बमध्यस्था देवीप्रीतिकरी शिवा । वीरपेयानित्यसिद्धा भैरवी भैरवप्रिया ।। कायस्थकुल संपूज्या 5sभीराभित्तनजनप्रिया ।। शूद्रसेव्याराजपेया चूर्णाचूर्णित कारिणी ।। चन्द्रानुजादेवपीता दैत्यालक्ष्मीसहोदरा । म्लेच्छप्रियादानवेज्या यादवान्वयनाशिनी ।। गौरण्डागौरसंसेव्या फ्रान्सदेशसमुद्भवा । शराबमयदुखतरिरजवतगुलगू आफताबशर । ब्राण्डी शाम्पिन्पोर्टवाइन क्लारेट एकश्वास्तु हागिन् । मुजेलहिवस्कीमार्टल औल्डटाम हेनिसी शेरी । बिहाइव वैडेलिसमेनी रमबीयर बरमौथुज ।। क्यूरेसिया कागनक्लअण्टिलोपिका । बाइनमगैलिसाइवान मरू वरमऐक्वावाइटा ।। दुधिया दुधवा दुढी दारु मद दुलारिया । कलवार-प्रिया काली कलवरियानिवासिनी । होटलीलोटलीलोट नाशिनी चोटलीचला । धनमानादि संहीं ग्रेण्डटोटल कारिणी ।। पंचापंच परित्यक्ता पंच पंचप्रपंचिता । इमानिश्रीमहामद्य नामानिवदनेसदा । तिष्ठन्तु सेविनासंख्या क्रमातसाई शतानिच ।। य: पठेत्प्रातरुत्थाय नामसार्द्धशतम्मुदा । धनमान परित्यज्य ज्ञातिपंक्त्याचुतोभवेत् ।। निन्दितो बहुभिलोकैर्मुखस्वासपरांगमुखैः । बलहजीनोक्रियाहीनो मूत्रकृतलुण्ठतेक्षितौ ।। पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा यावल्लुठतिभूतले । उत्थाय च पुन : पीत्वा नरोमुक्तिमवाप्नुयात् ।। इति श्री पञ्चमहातंत्रे प्रपंचपटले पंचमकारवर्णनमदिरास्तवाराजे सार्द्धशतनाम संपूर्णम् । अथ स्तवराज- हे मदिरे तुम साक्षात भगवती का स्वरूप हौ, जगत तुमसे व्याप्त है, तुम्हारी स्तुति करने को कौन समर्थ है अतएव तुम्हें प्रणाम ही करना योग्य है । हे मद्य तुम्हें सौत्रामणि यज्ञ में तो वेद ने प्रत्यक्ष आदर दिया है परंतु तुम अपने सोमरूप प्रच्छन्न अमृत प्रवाह से संपूर्ण वैदिक यज्ञ वितान को प्लावित करती हो अतएव हे श्रुतिश्रुते तुम्हें प्रणाम है। हे वारुिणि ! स्मृतिकारों ने भी तुम्हारी प्रवृत्ति नित्य मानी है, निवृत्ति केवल अपने पद्धति पने के रक्षण के हेतु लिखी है अतएव हे स्मृतिस्मृते तुम्हें प्रणाम है। हे गौड़ि ! पुराणों में तो तुम्हारी सुधासारिण कथा चारों ओर अति वाहित है, निषेध के बहाने भी तुम्हारी विधि ही विधि है, इससे हे पुराण प्रतिपादिते ! तुम्हें प्रणाम है । हे सोम सन्नते ! चंद्रमा में तुम्हारा निवास, समुद्र तुम्हारी उत्पत्ति का स्थान और सकल देव, गुष्य,

भारतेन्दु समग्र ९९०