पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०३५

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असुर तुम्हारे पति हैं, अतएव हे त्रिलोकगामिनि ! तुम्हें प्रणाम है। हे बोतल वासिनि ! देवी ने तुम्हारे बल से शुभादि को मारा । यादव लोग तुम्है पी के कट मरे । बलदेव जी ने तुम्हारे प्रताप से सूत का सिर काटा, अतएव हे शक्ति ! तुम्हें प्रणाम है। हे सकल मादक सामग्री शिरो रत्ने ! तंत्र केवल तुम्हारे प्रचार ही को बनाए हैं, और इनका कोई प्रयोजन नहीं था केवल तुम मय जगत् करने को इनका अवतार है, अतएव हे स्वतंत्रे ! तुम्हें प्रणाम है। हे ब्रांडि ! बौद्ध और जैन धर्म की तुम सारभूत हौ । मुसल्मानी में मुफ्त के मिस हलाल हो ! क्रिस्तानों में भी साक्षात प्रभु की रुधिर रूप हौ और ब्राहमोधर्म की तुम एक मात्र आड हो. अतएव हे सर्व धर्म मर्म स्वरुपे! तुम्हें प्रणाम है। हे शाम्पिन ! आगे के लोग सब तुम्हारे सेवक थे, यह श्लोकों के प्रमाण सहित बाबू राजेन्द्रलाल के लेकचर से सिद्ध है तो अब तुम्हारा कैसे त्यार हो सकता है, अतएव हे सिद्ध ! तुम्हें प्रणाम है। हे ओल्डटाम ! तुम्हें भारतवर्षियों ने उत्पन्न किया. रुम. चीन इत्यादि देश के लोगों ने कुछ परिष्कृत किया, अब अंग्रेजों और फरासीसियों ने तुम्हें फिर से नए भूषण पहिराए, अतएव हे सर्वविलायत भूषिते ! तुम्है प्रणाम है। हे कुलमर्यादासंहारकारिणि ! तुमसे बढ़कर न किसी का बल है, न आग्रह, न मान, तुम्हारे हेतु तुम्हारे प्रेमी कुल, धन, नाम, मान, बल, मेल, रूप वरञ्च प्राण का भी परित्याग करते हैं, अतएव हे प्रणयेक पात्रे ! तुम्हें प्रणाम है। हे प्रेजुडिस-विध्वंसिनी ! तुम्हारे प्रताप से लोग अनेक प्रकार की शंका परित्याग करके स्वच्छंद विहार करते हैं जिनके बाप-दादे हुक्काभांग-सुरती से भी परहेज करते थे वे अब सभ्यों की मजलिस में तुम्हारा सेवन करके जाना ऐब नहीं समझते, अतएव हे बोलइलेस जननि! तुम्हें प्रणाम है। हे सर्वानंद सार भूते ! तुम्हारे बिना किसी बात में मजा नहीं मिलता, रामलीला तुम्हारे बिना निरी सुपनखा की नाक मालूम पड़ती है, नाच निरे फूटे कांच और नाटक निरे उच्चाटक बेवकूफी के फाटक दिखाई पड़ते हैं, अतएव हे मजे की मोटरी, तुम्हें प्रणाम है। हे मुख-कज्जलावलेपके ! होटल नाच जाति पाँति घाट बाट मेला तमाशा दरबार घोड़ दौड़ इत्यादि स्थान में तुम्हें लेकर जाने से लोग देखो कैसी स्तुति करते हैं । अतएव हे पूर्व पुरुष संचित विद्या धन राज संपादि जन्य कठिन प्राप्य प्रतिष्ठा समूह सत्यानाशनि ! तुम्हें बारबार प्रणाम करना योग्य है। कंकर स्तोत्र | कंकड देव को प्रणाम है। देव नहीं महादेव क्योंकि काशी के कंकड़ शिव शंकर समान है हे कंकड़ समूह ! आज कल आप नई सड़क से दुर्गा ची तक बराबर छाये हो इससे काशी खण्ड "तिलेतिले" सच हो गया अतएव तुम्हें प्रणाम है। हे लीला कारिन् ! आप केशी शंकट वृषभ खरादि के नाशक हो इससे मानो पूर्वार्द की कथा हो अतएव व्यासों की जीविका हौ। आप सिर समूह मज्जन हो क्योंकि कीचड़ में लोग आप पर मुंह के बल गिरते हैं। आप पिष्ट पशु की व्यवस्था हो क्योकि लोग आप की कढ़ी बना कर आप को चूसते हैं। आप पृथ्वी के अंतरगर्भ से उत्पन्न हो । संसार के गृह निर्माण मात्र के कारण भूत हो । जल कर भी सफेद होते हो। दुष्टों के तिलक हौ। ऐसे अनेक कारण हैं जिनसे आप कमस्कारणीय हो । हे प्रबल वेग अवरोधक ! गरुड़ की गति भी आप रोक सकते हो और की कौन कहै इससे आप को प्रणाम स्तोत्र पंचरत्न ९९१