पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०३७

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हे भगवान हे अंतरयामिन् ! हम जो कुछ करते हैं केवल तुम को धोखा देने को. तुम दाता कहो इस हेतु हम दान करते हैं, तुम परोपकारी कहो इस हेतु हम परोपकार करते हैं तुम विद्यमान कहो इस हेतु हम विद्या पढ़ते हैं अतएव हे अंग्रेज ! तुम हम पर प्रसन्न हो हम तुमको नमस्कार करते हैं । हम तुम्हारी इच्छानुसार डिस्पेंसरी करेंगे, तुम्हारे प्रीत्यर्थ स्कूल करेंगे तुम्हारी आज्ञा प्रमाण चंदा देंगे. तुम हम पर प्रसन्न हो, हम तुम को नमस्कार करते हैं। हे सौम्य ! हम वही करेंगे जो तुमको अभिमत है. हम बूट पतलून पहिरेंगे, नाक पर चश्मा देंगे, कांटा और चिमटे से टिबिल पर खायेंगे, तुम हम पर प्रसन्न हो हम तुम को प्रणाम करते हैं। हे मिष्टभाषिण! हम मातृभाषा त्याग करके तुम्हारी भाषा बोलेंगे, पैतृक धर्म छोड़ के ब्राह्म धर्मावलंब करेंगे, बाबू नाम छोड़ कर मिष्टर नाम लिखवावेंगे, तुम हम पर प्रसन्न हो हम तुम को प्रणाम करते हैं। हे सुभोजक ! हम चावल छोड़ के पावरोटी खायेंगे. निषिद्धमास बिना हमारा भोजन ही नहीं बनता. कुक्कर हमारा जलपान है, अतएव हे अंग्रेज ! तुम हम को चरण में रक्खो हम तुम को प्रणाम करते हैं । हम विधवा विवाह करेंगे, कुलीनों की ज्ञाति मारेंगे, जाति भेद उठा देंगे - क्योंकि ऐसा करने से तुम हमारी सुख्याति करोगे, अतएव हे अंग्रेज ! तुम हम पर प्रसन्न हो हम तुम को नमस्कार करते हैं । हे सर्वद! हम को धन दो, यश दो, हमारी सब वासना सिद्ध करो, हमको चाकरी दो. राजा करो, रायबहादुर करो, कौंसिल का मिबर करो हम तुमको प्रणाम करते हैं। यदि गह न हो तो हम को डिनर होम में निमंत्रण करो, बड़ी बड़ी कमेटियों का मिम्बर करो, सीनट का मिम्बर करो, बसटिस करो, आनरेरी मजिस्ट्रेट करो, हम तुमको प्रणाम करते हैं। हमारी स्पीच सुनो, हमारा एसे पढ़ो हम को वाह वाही दो. इतना ही होने से हम हिंदू समाज का अनेक निन्दा पर भी ध्यान न करेंगे, अतएव हम तुम्हीं को नमस्कार करते हैं। हम अकिञ्चन हैं और तुम्हारे द्वार पर खड़े रहेंगे, तुम हमको अपने चित्त में रक्खो हम तुमको डाली भेजेंगे, तुम अपने मन में थोड़ा सा स्थान मेरी ओर से भी दो. हे अंग्रेज ! हम तुमको कोटि कोटि शाष्टांग प्रणाम करते हैं। तुम दशावतार धारी हो, तुम मत्स हो क्योंकि समुद्चारी हो और पुस्तक छाप छाप के वेद का उद्धार करते हो, तुम कच्छ हो – क्योंकि मदिरा, हलाहल, वारांगना, धन्वन्तर और लक्ष्मी इत्यादि रत्न तुमने निकाले हैं पर वहां भी विष्णुत्व नहीं त्याग किया है अर्थात् लक्ष्मी उन रत्नों में से तुमने आप लिया है, तुम श्वेत वाराह हो क्योंकि गौर हो और पृथ्वी के पति हो, अतएव हे अवतारिन् ! हम तुमको नमस्कार करते हैं । तुम नृसिंह हो क्योंकि मनुष्य और सिंह दोनों पन तुम में है टैक्स तुम्हारा क्रोध है और परम विचित्र हो, तुम बामन हो क्योंकि तुम बामन कम में चतुर हो, तुम परशुराम हो क्योंकि पृथ्वी निक्षत्री करदी है, अतएव हे लीलाकारिन् ! हम तुमको नमस्कार करते हैं। तुम राम हो क्योंकि अनेक सेतु बाँधे हैं, तुम बलराम हो क्योंकि मद्यप्रिय और हलधारी हो, तुम बुद्ध हो क्योंकि वेद के विरुद्ध हो, और तुम कल्कि हो क्योंकि शत्रु संहारकारी हो, अतएव हे दश विधि रूप धारिन् ! हम तुमको नमस्कार करते हैं। तुम मूर्तिमान् हो ! राज्यप्रबंध तुम्हारा अंग है, न्याय तुम्हारा शिर है, दूरदर्शिता तुम्हारा नेत्र है और कानून तुम्हारे केश हैं अतएव हे अंग्रेज ! हम तुमको नमस्कार करते हैं। कौंसिल तुम्हारा मुख है, मान तुम्हारी नाक है, देश पक्षपात तुम्हारी मोक्ष है और टैक्स तुम्हारे कराल दंष्ट्रा हैं अतएव हे अंगरेज ! हम तुमको प्रणाम करते हैं हमारी रक्षा करो । चुंगी और पुलिस तुम्हारी दोनों भुजा है, अमले तुम्हारे नख हैं, अन्धेर तुम्हारा पृष्ट है और आमदनी तुम्हारा हृदय है अतएव हे अंग्रेज ! हम तुमको प्रणाम करते हैं। खजाना तुम्हारा पेट है, लालच तुम्हारी क्षुधा है, सेना तुम्हारा चरण है, खिताब तुम्हारा प्रसाद है, अतएव हे विराटरूप अंग्रेज ! हम तुमको प्रणाम करते हैं । दीक्षा दानं तपस्तीर्थ ज्ञानयागादिका : क्रिया। अंग्रेज स्तवपाठस्य कला नाहति षोडशीम् ।।१।। स्तोत्र पंचरत्न ९९३