पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०३९

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समझ में मूर्ख हैं इसी से यह उसी का विलक्षणपन है कि हिंदू निर्लज्ज हो गए हैं. ऐसे समय में जब कि सब आगे बड़ा चाहते हैं ये चूकते हैं और पीछे ही रहे जाते हैं, विशेष सब संसार का आलस्य पश्चिमोत्तर देश वासियों में घुसा है और अपने को भूल रहे हैं क्षुद्रपना नहीं छूटता इसी से यह उसी का विलक्षणपना है कि हम लोग समाचार पत्र लिखते हैं और यह अभिमान करते हैं कि हमारे इन लेखों से हमारे भाइयों का कुछ उपकार हो, भला नक्कारखाने में तूती की आवाज़ कौन सुनता है, सब अपने रंग में उसकी माया से मस्त हैं उनको क्यों नहीं छोड़ते हैं क्यों नहीं विराग करते, संसार मिटे हमको क्या हम कौन जो कहै, पर यह नहीं समझते, हम अपने ही अभियान में चूर हैं यह भी सब उसी की माया है इसी से हम कहते हैं ईश्वर बड़ा विलक्षण है। मुशायरा इसका काल अब तक अज्ञात है।हे। - सं. चिड़ीमार का टेला । भाँत भाँत का जानवर बोला ।। लखनऊ दिल्ली बनारस पूरब और दखिन के कई मुफ्तखोरे शायर एक जगह जमा हुए और लगे रंग बिरंगी बोलियाँ बोलने मैंने भी वहीं मैक्राफून की कल लगा दी । जो कुछ उसमें आवाज बन्द हो गई आप लोग भी सुन लीजिए। सबके पहिले लाला साहब उठे और बन्दगी करके यों चोच खोली । "गल्ला कटै लगा है कि भैया जो है सो है।। बनियन काँ गम भवा है कि भैया जो है सो है ।। लाला की भैसी शीर निचोवत माँ शाशी जब । दूध ओहमा मिल गवा है कि भैया जो है सो है ।। इक तो कहत माँ मर मिटी खिलकत जो हैगा सब । तेहपर टिकस बंधा है कि भैया जो है सो है ।। अँगरेज अफगान से वह जंग होत अखबार माँ लिखा है कि मैया जो है सो है ।। कुप्या भए हैं फूल के बनियाँ ब फर्ते माल' । दमकला है कि भैया जो है सो है।। अखबार नाहीं पंच से बढ़ कर भवा सिक्का य जम गवा है कि भैया जो है सो है।।" इसके बाद लाला साहब ने रें रें कर के एक होली भी गाही दी ।। कैसी होरी खिलाई। आग तन मन में लगाई ।। पानी की बूंदी से पिंड प्रगट कियो सुंदर रूप बनाई । पेट अधम के कारन मोहन घर घर नाच नचाई ।। पेट उनका कोऊ ।। १. कवि सम्मेलन २. एक यंत्र ३. अकाल ४. प्रजा ५. धन कमाकर ।

मुशायरा ९९५