पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१०४

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तोमाय । कोथाय रहिल सखि से गुन-मान । जीवन । त हृदय माझे ओ प्रानधन आर रब ना ।४ हबे बूझि पागलेर मत ।१३) आर जातना प्रान सहे ना । आमार नाथ बड़ दयामय । सदा मन उचाटन, झरिछे दु नयन, करुना-आकर दयार सागर कांत बुझिए जीवन, आमार आर रबे ना । दयामय नाम जगत भीतर । हाए एमन समय, कोथा ओहे रसमय, एक मुखे गुन वर्णना जे भार, हइया अति सदय, आछ प्रान बलो ना ५ कहि छ 'चन्द्रिका' भाविया हृदये ।१४ प्राननाथ देखा दाओ आसि अबलाय । कलिंगड़ा एक-ताला जे दु:ख पेतेछि आमि, मन जाने आर, ओ प्रान नयन-कोने चाईले परे क्षति कि आछे । आमि जानि आरि जानेन ईश। आमार केंद सोहाग जेंचे मान तोमार काछे । जिनि के मने आमि जानाब जथा इच्छा तथा जावो, सदत हृदय रओ। आमार जे दशा माथ आसिया हे देख ना । तोमार विहन कओ, आमार के आछे ।१५ हरिश्चंद्र नाथ जार, केन हेन दशा तार, बल ओहे गुनि-मनि, आमार हे बलो ना । सिंधु धीमा तिताला सदा मन उचाटन, दहिते छे जीवन मन, ए सोहाग आर आमार काज नाई। असह्य 'चंद्रिका' जीवने सहेना सदत जे हृदय ज्वाला यातना ७ पाई। दहन जायगो कि करि एखन बल गोसाई ।१६ विच्छेद यातना, आर जे सहेना । कि करि बल न ओ प्रान सजनी । प्राननाथ कि बले छिले । केमने एखन, धरिब जीवन । ए दारुण ज्याला हृदये केन गो दिले । राखिब तोमाय । से कांत विहन बल ओ धनी ।८ सदत बलिते नाथ हे हाय विधि एत मोरे केन निर्दय । अमाय। से अमूल्य रतन करिया अपन, कथन रहिल कोथाय । सब भेवे देख प्रान कि केन गो हरन ताहारे कराय । मम प्रान-धन, हृदय-रतन कोथाय रहिले प्रान एमन बरखा ते । रमनी-मोहन कोथाय गो जाय ।५ देख घन घन, बरिषे नयन, अबलारे भिजाते । तुमि कर के तोमार कारे बल रे मन आपन । बल ओरे प्रान, तोमाय कोन जन, मिछ। ए संसार माया जुड़े आछे त्रिभुवन । शिखाले एमन आमारे कांदते । दारा सुल परिवार संगे कि जावे तोमार । 'चंद्रिका' जे बले नाथ कि करिले जखन तुमि मुंदिबे अबला बधिले बुझि हे प्रानेते !१८ दु ओरे हरि दयामय! आदरे आदरे भालो आर जे सहे ना । जे तोमार अनुगत तार कि करिले । उधारो नव जलधर तुमि तृषित चातकि आमी. आमाय ।११ ओहे नाथ करुनामय! ओहे प्राननाथ कोथा बारि विन्दु बरषिले । प्रान-प्रिय प्रान-धन, वल जातना एमन, दया करो जनाय नामे ना कलंक 'चंद्रिका' हृदये केन गो दिले ।१९ उदारो तराय। आमि अति मूढ मति, न जानी भक्ति स्तुति, ओहे हरि जगतेर पति । कि हवे आमार गति, बल गो आमाय ॥१२ | दया कर दयामय आमि दीन हीन अति । लाए छे शरण चरणे जे जन, रूष्ट कि कारण ताहार प्रति । नाम दयाकर जगत भीतर कि एतेक, भावना, किसेर कारन, हवे आमार बल गो गति ।२० करिले ।१७ नयन ।१० तो छिले । ए भव-जंत्रना. करिया करुना, प्रभु हरि दयामय, ए रय मन केन रे भाव एत । ओई जे दिवा-निशि भावछ बसी, जेन बुधि हुए छे हत । भारतेन्दु समग्र ६४